लोकसभा में लाये गये महिला आरक्षण विधेयक का भारतीय जनता पार्टी को 2024 के लोकसभा चुनाव में लाभ मिलने की उम्मीद तो धूमिल पड़ ही गई है, उलटे लोकसभा में इस पर बुधवार को हुई प्रदीर्घ चर्चा ने उसके महिला सम्मान की कलई को खोलकर रख दिया है। मंगलवार को नये संसद भवन में जाने के बाद शाम को यह विधेयक पेश किया गया जिसके अनुसार यह 2026 में लागू होगा और इसका आधार भावी परिसीमन होगा। यानी इसका वास्तविक लाभ 2029 के लोकसभा चुनावों में ही मिलेगा।
वह भी केवल 15 वर्षों के लिए। इसे तीन साल बाद अमल में लाने का कारण 2021 में जनगणना का न होना है। भारत सरकार ने कोविड-19 के कारण जनगणना नहीं की थी। इसका मतलब जब जनगणना होगी, उसमें प्राप्त आंकड़ों के आधार पर आरक्षण होगा। जो भी हो, जिस प्रकार से बुधवार को इस प्रकार चर्चा हुई, उसने भाजपा सरकार को और भी ज्यादा परेशानी में डाल दिया है।
आम चर्चा यही थी कि अगले वर्ष के आम चुनाव में महिला वोटरों को अपने पाले में लेने के लिये यह बिल लाया गया है, परन्तु ऐसा होता दिख नहीं रहा है क्योंकि भाजपा इसे भुनाने में शायद ही सफल हो। सत्ता पक्ष के मंत्रियों एवं अनेक सदस्यों ने स्वाभाविकतरू इसे लाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया लेकिन ज्यों-ज्यों विपक्षी नेताओं को बोलने के अवसर मिलते गये, यह साफ होता गया कि इसे एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने पेश किया था लेकिन 2010 में इसे राज्यसभा में कांग्रेस के शासनकाल में पारित किया गया।
लोकसभा में यह समाजवादी पार्टी एवं राष्ट्रीय जनता दल के विरोध के कारण पास न हो सका- इस ऐतिहासिक तथ्य से सारे परिचित हैं लेकिन सत्ता पक्ष की ओर से बोलते हुए निशिकांत दुबे ने इस मतभेद को भुनाने का प्रयास किया। साथ ही, इसका श्रेय पहले तो गीता मुखर्जी एवं सुषमा स्वराज को दिया लेकिन अंत में सिर्फ मोदी को इसका श्रेय दिया।
दुबे ने अनेक उन अप्रिय घटनाओं का जिक्र किया जो इस विधेयक के पिछली बार लाये जाने (2010 में) के दौरान हुई थीं, जिसका उद्देश्य दलगत विरोध को आगे ही बढ़ाना था। वे ऐसी बातें थीं जो तत्कालीन परिस्थितियों में हुई थीं जो आज शायद ही प्रासंगिक रह गई हैं। इसमें कुछ नेताओं द्वारा बिल के विरोध में यह कहना कि इससे परकटी महिलाएं ही आयेंगी, भी शामिल है।
बेशक, ये बयान दुर्भाग्यजनक थे परन्तु उनका उल्लेख कर भाजपा के सदस्य यह साबित करने पर तुले थे कि प्रतिपक्ष विरोध करने के लिये विरोध कर रहा है जबकि वह वैसी संजीदा नहीं हैं जैसी भाजपा है, पर यह दांव चला नहीं। सत्ता पक्ष के कुछ सदस्यों की ओर से इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में भाजपा की बड़ी पहल साबित करने की कोशिश की गई परन्तु कई विपक्षी महिला सांसदों ने उनके ऐसे दावों की धज्जियां उड़ा दीं।
पहले तो सोनिया गांधी ने बतलाया कि यह बिल उनके दिवंगत पति व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का सपना है जिन्होंने ग्राम पंचायत स्तर पर महिलाओं की बड़ी हिस्सेदारी आरक्षण के जरिये सुनिश्चित की थी। उन्होंने इस विधेयक को तत्काल लागू करने की मांग की तथा उसका लाभ चुनाव-2024 में ही देने की वकालत की। तृणमूल कांग्रेस की काकोली घोष दस्तीदार ने भाजपा पर बड़ा हमला बोला।
उन्होंने कहा कि विधेयक लाकर नारी सम्मान का दिखावा सरकार न करे। उन्होंने याद दिलाया कि संसद भवन से कुछ दूरी पर बने जंतर-मंतर पर यौन शोषण का शिकार हुई महिला पहलवानों की कोई सुनवाई सरकार द्वारा नहीं की गई। जिस व्यक्ति बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप हैं उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई और वह अब भी इसी सदन का सदस्य है।
जिस तरह से उन्हें पुलिस द्वारा घसीटा गया व उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ, वह भी उन्होंने याद दिलाया। उन्होंने मणिपुर की घटना का भी जिक्र किया और उन्नाव, हाथरस आदि की उन वारदातों का स्मरण कराया जिनमें महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ। उन्होंने ध्यान में लाया कि पूरे भारत में इस वक्त केवल पश्चिम बंगाल में महिला मुख्यमंत्री हैं जबकि भाजपा के 16 राज्यों में सीएम हैं जिनमें एक भी महिला नहीं है। द्रविड मुनेत्र कषगम की कनिमोझी ने पेरियार को उद्धृत करते हुए लैंगिक समानता की बात की।
उन्होंने बताया कि गीता मुखर्जी, सुषमा स्वराज के साथ साम्यवादी नेता वृंदा करात का भी इस विधेयक को लाने में योगदान था। उन्होंने कहा कि महिलाओं को बड़ी ऊंचाई पर बैठने की चाहत नहीं बल्कि समानता का हक चाहिये। जब उन्होंने कहा कि अनेक महिला राजनीतिज्ञ हैं जो काफी ताकतवर हैं, तो सत्ता पक्ष की ओर से एक सांसद ने जयललिता (डीएमके की राजनैतिक विरोधी) का नाम लिया।
इस पर कनिमोझी ने स्वीकार करते हुए कई नाम गिना डाले जो विपक्ष की हैं। इनमें उन्होंने मायावती, सोनिया गांधी, ममता बैनर्जी के नाम तो लिये ही, सुषमा स्वराज का भी नाम लेकर भाजपायी सदस्यों को निरूत्तर कर दिया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया सुले ने भी इस विधेयक को इन शर्तों के साथ लाने की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि महिलाओं को इसके लिये और इंतजार कराना ठीक नहीं।
उन्होंने भी इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाये। बहुमत के बल पर इसे पारित तो होना ही था, लेकिन यह साफ हो गया कि इसे लाने का भाजपा का उद्देश्य महिलाओं के वोट पाना है। अनेक सदस्यों ने यह बात उजागर तो कर ही दी, महिलाओं के प्रति भाजपा कितनी असंवेदनशील है, यह भी लम्बी चर्चा में साबित हो गया। कुल जमा, भाजपा को इसका लाभ होना सम्भव ही नहीं लगता। उलटे वह महिला मुद्दे पर बेनकाब हो गई।