क्यों न उठाएं प्रश्न?

क्यों साहबान, हम अपनी

दुर्गति भी न सुनाएं?

अपना दर्द क्यों छुपाएं,

आप ही बताओ प्रश्न क्यों न उठाएं?

इस देश में मुट्ठी भर लोग ही खास है,

सारा धन व संसाधन सिर्फ उनके पास है,

जल,जंगल,जमीन की

रक्षा कर भी हम मारे जा रहे हैं,

निठल्ले,तोंदिए बैठे बैठे खा रहे हैं,

ऐसा क्या रहस्य है कि वे मालामाल है,

इस भूमि के असली मालिक

तंगहाल,फटेहाल है,

हमारे प्रतीक आज उनके कहा रहे हैं,

उन्हीं से वे धन बना रहे हैं,

प्रश्न उठाना हमारा कर्तव्य है,

अपनी लाचारी,उनकी बकलोली पर

सारा देश स्तब्ध है,

जिस जाति का उन्हें घमंड है,

वहीं जाति औरों के लिए दंड है,

मदहोशों के माथे पर कब्ज़ा किये बैठे हैं,

अपने कुकर्मों पर भी वे ऐठें हैं,

हमारी थोड़ी सी भी तरक्की से

धू धूकर जलते हैं,

हमारे ही दिये पैसे से पलते हैं,

सवाल हमारी मूर्खता पर उठाना होगा,

मानसिक गुलामी कर रहे मूर्खों को

उंगली दिखाना होगा,

संभल जाओ, बदल जाओ,

संगठित हो अपनी सत्ता लाओ,

और जहां भी जरूरी हो

प्रश्न जरूर उठाओ।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग