अनपहचाना सा

न ही नाम ,

न पहचान,, न पता ,,

न स्वभाव,,न रंग-रूप,,

कुछ भी तो नहीं जानती थी 

तुम्हारे बारे में,


पर, संजोती रही 

तुम्हारे "होने" भर को

कभी बादलों की ऊंचाइयों पर,,

तो कभी झरती हुई बारिशों में ,

धूप के पीले उजास में ,,

कभी सांझ के सुरमई राग में,,

रात के एकांत में..

और,, 

शब्दों के आकार में,


लेकिन, हर एक रंग में

कहीं न कहीं 

कोई एक रंग तुम्हारा ही था,,

सिर्फ, मुझसे ही

अनपहचाना सा !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश