जब मुझको प्रेयषि ने मारा मेरे मुंह से निकल गया
प्रेयषि तूं ही एक सहारा
थप्पड़ नहीं प्यारकी थपकी जिसका तुमने इजहार किया
तुम मेरी आँखों का तारा
सात बचन में प्रथम बचन है बहुबचनों से भारी जो
है बना अनौखा प्यारा
धर्म कर्म सम्मति से करना यज्ञ आहुति मिल देना
यह है प्रिय संकल्प हमारा
धर्म कर्म से दूर हैं दोनों यज्ञ होम से दूर का नाता
मन की मौज उड़ाना है
कोई जाए कहीं कभी भी, रोक थाम दूर की कौडी़
अपने मन की करना है
झूठे वादे कसमों से बना हमारा साथ छोड़ प्रिय
अब रचो नया इतिहास
प्रेयषि की प्यारी थपकीसे, सांझ सवेरे की धमकीसे
टूट गई जीवन की आस
मुक्त हो रहे हम बंधनसे माथे की बिंदिया चंदनसे
हम पकड़ें अपनी राह
उठ गई हाट दूकान उठाओ, मैं पूरब तुम पश्चिम जाओ
कुछ करो न अब परवाह
उल्कापात हुआ धरती पर टूटे उड़ने से पहले पर
यह है कर्मों की सौगात
किसका कहाँ बसेरा होगा जाने कभी सबेरा होगा
नम आंखों से टपकी बूंदें भींग गए सब गात
बांह पसारे खड़ा तुम्हारा जिसकी तुम आंखों का तारा
सात जनम का साथ दुलारा
भूल जायं हम उन भूलों को जिससे विघटन हुआ हमारा
नए सिरे से इसे सजाएं यह घर ही संसार हमारा
बच्चू लाल परमानंद दीक्षित
दबोहा भिंड 8349160755