हम खाली पड़े हैं

भजनखबरी उपचुनाव में नेताओं के लिए वोट बटोरने का नया धंधा चालू कर रखा है। अंतर केवल इतना है कि यह सब वह घर पर रहकर करता है। इससे पहले बाहर जाओ, धूप में पसीना बहाओ, पोस्टर चिपकाओ, इनकी-उनकी गाली खाओ की फजीहत थी। धन्यभाग्य की ऑनलाइन के चलते उसके माथे में प्रचार-प्रसार के नए विचार ठनके। अब वह घर पर रहकर ही सारी सृजनशीलता दिखा रखा है। 

मल्टी मीडिया के चलते सोशल मीडिया की सीढ़ी चढ़कर नेता जी को नए-नए आइडिया दे रहा है। बदले में अच्छी-खासी मोटी रकम वसूल रहा है। वह जिस नेता का प्रचार-प्रसार कर रहा था उनका नाम दयाराम था। सिर्फ नाम के दयाराम थे। पुलिस थाने में उनकी दया के किस्से चोर-डकैती, लूटपाट, खूनखराबा के रूप में दर्ज है। इसी दयाराम के ऊपर भजनखबरी ने छोटा-सा गीत लिख डाला – राम बोलो भाई राम बोलो – जय जय दयाराम बोलो। प्यार से बोलो भई जोर से बोलो – जय जय दयाराम बोलो। 

फूटा अंडा निशान है बोलो – जय जय दयाराम बोलो। चुनाव में यही बटन दबा दो – जय जय दयाराम बोलो। गीत सुनने के बाद दयाराम जी को लगा कि आरंभ की लाइनें शवयात्रा जैसी हैं। इस पर भजनखबरी ने स्पष्टीकरण देते हुए उवाचा – नेता जी आजकल लोग बड़े बदल गए हैं। वे पारंपरिक पद्धति के गीत नहीं सुन रहे हैं। उन्हें एकदम हटकर सुनना पसंद आता है। चूँकि गीत की आरंभिक पंक्तियाँ शवयात्रा सी लग रही है इसलिए यह गीत उन्हें बहुत पसंद आयेगा। यह सुन नेता जी बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कुछ नारे बना लाने के लिए कहा।

नारे बनाने के चक्कर में भजनखबरी को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। देखते-देखते यह काम भी कर डाला। पहला नारा बना – वोट नहीं तो दया नहीं – आप पर राम की कृपा नहीं। दूसरा नारा बना - वोट दिया तो पुण्य मिलेगा, नहीं तो तुमको पाप लगेगा। तीसरा नारा बना – दया है तो मुमकिन है – राम के चलते रात और दिन है। इस तरह कई नारे बना डाले। नारे सुन दयाराम को खुद पर हँसी आ रही थी। उन्हें लगा पैसा अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा बना देता है। पैसा न हो तो सगा बेटा भी बाप की अच्छाई नहीं बताता। वरना जीवन भर जन्म देने के लिए उसे कोसता रहता है।

 दयाराम को नारे इतने अच्छे लगे कि हाथों हाथ उन्होंने भी कई नारे बना डाले – आएगा भई आएगा – दयाराम आएगा। लाएगा भई लाएगा खुशहाली लाएगा। इधर उधर जिधर देखो – दयाराम की कृपा देखो। नारे इतने पॉवरफुल थे कि भजखबरी को अपनी दुकान बंद होती नजर आयी। तुरंत उसने नेता जी को रोका। कहा - आप भी कमाल करते हैं। आपका काम हड़कंप मचाना है, लोगों को दहलाना है, अपना खौफ जमाना है। न कि नारे बनाने जैसा चिल्लर काम करना है। शेर अगर घांस की ओर ताकेगा तो बाकी जानवर उस पर चढ़ बैठेंगे।

 यह सुन दयाराम नारा बनाने के काम से हायतौबा कर ली। भजनखबरी ने उन्हें सुझाव देते हुए उवाचा कि आप अपना एक निजी चुनावी एजेंडा बना लीजिए। ऐसे-ऐसे वायदे कीजिए कि लोग सुनकर दंग रह जाएँ। वो जब तक कुछ सोचे समझेंगे तब तक चुनाव बीत चुका होगा और आप गद्दी पर पैर पे पैर धरकर शासन करते हुए नजर आयेंगे। आप उन्हें सपना दिखाइए कि समुद्र का पानी फिल्टर कर उन्हें पीने के लिए दिया जाएगा। रेती से सोना निकालने का व्यापार सिखाया जाएगा। शिक्षा के नाम पर सब लोगों के शरीर में शिक्षा का चिप फिट करवाया जाएगा, तब देखिए लोग आपको वोट दिए बिना नहीं रह पायेंगे। आप अपने जन्मदिवस को दया दिवस के रूप में घोषित कर दें।

 केवल ध्यान इस बात का रखना है कि जन्मदिवस के दिन छोड़ फिर किसी दिन दया दिखाने की आवश्यकता नहीं है। यही लोगों के लिए सच्चे अर्थों में दया दिवस होगा। यदि आप मेरी बातों का पालन करेंगे तो आप भगवान श्रीराम से भी ज्यादा नाम कमायेंगे। भजनखबरी और भी कुछ कहना चाहता था कि तभी दयाराम के फोन की घंटी बज उठी। पता चला कि उनका टिकट कट गया है और टिकट उनके प्रतिद्वंद्वी गयाराम को दे दिया गया है।

यह खबर सुनते ही ऊपर बताए गीत और नारों के साथ भजनखबरी गयाराम की बगल में जा बैठा। इसके लिए उसने केवल एक काम किया – दया की जगह गया लिखकर गीत और नारों की पुरानी शराब को नयी बोतल यानी गयाराम में भर दिया। उसका तो एक ही चुनावी फार्मुला था - ऐसे वैसे चाहे जैसे... सिर्फ कमाना है पैसे। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध युवा व्यंग्यकार