किन्नर कौन है?
क्या वो जो जोर जोर से ताली बजाते हैं?
मर्दाने आवाज में खुद को औरत जताते हैं,
नहीं भाई ये नहीं है किन्नर,
ये तो कुदरत के सताये हुए हैं,
कुछ कमियों के साथ दुनिया में आये हुए हैं,
मगर आज जान लीजिए कि किन्नर वे हैं
जो दूसरों का हक़ खाते हैं,
हक़ खाकर भी भूखे रह जाते हैं,
दूसरों की तरक्की देख नहीं सकते,
खुद को वहां तक खींच नहीं सकते,
सिर्फ इंसान न रहकर
जाति का घमंड दिखाते हैं,
धर्म के नाम पर औरों को सताते हैं,
योग्य को भी अयोग्य बताते हैं,
जातिय जलन में
लोगों की लगती नौकरी खा जाते हैं,
सबसे बड़ा किन्नर वो है
जो खुद की कमाई से संतुष्ट नहीं रह पाता है,
और गरीबों और मजलूमों के आगे
रिश्वत के लिए बेरहमी वाला हाथ फैलाता हैं,
अब सोचो पहचान न आने वाले
कितने किन्नर हैं
जो नोच रहे हैं पल पल देश को।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग