इंडिया नहीं भारत कहो!

घर में टाइम्स ऑफ इंडिया आता है। इंडिया उसमें लगा लगाया आता है, मुझे पता नहीं था कि इतने दिनों से मैं पैसे देकर देश को गिराने वाला काम कर रहा हूँ। आज जाकर पता चला कि हमारे देश का नाम इंडिया नहीं भारत है। इसलिए मेरे मन में इंडिया के प्रति घृणा पैदा होने लगी है। 

सच कहूँ तो मुझे भारत पसंद है। हिंदी बोलना मुझे अच्छा लगता है। अंग्रेजी से नफरत है, इसलिए नहीं कि वह मुश्किल है बल्कि मुझे आती नहीं है। इसलिए हिंदी कपड़े जैसे धोती-कुर्ता,अंगोछा, कुर्ता, पायजामा पहनता हूँ। सूट-बूट पहनने से परहेज करता हूँ। इन्हें पहनने से इंडिया की फीलिंग आती है। ऐसा करना भारत के प्रति धोखा करने जैसा लगता है।

कपड़े धोबी धोता है। लाउंड्री वाला धोता तो वह इंडिया  के आयरन से मेरे कपड़े के भीतर का भारत निकाल बाहर करता। कुछ दिन पहले तक इंडिया के प्रति आदर भाव हुआ करता था। किंतु इधर बाबा गिरगिटलाल ने रंग बदलने का अजीब सा मंत्र सिखा दिया है। इसी के चलते जो चीज सुबह तक पसंद आती थी, वह शाम होते-होते नापसंद हो जाती थी। रंग बदलने का यह कोर्स आजकल व्हाट्सप विश्वविद्यालय में धड़ल्ले से चल रहा है। इस क्रैश कोर्स में करोड़ों आँख, कान, मुँह वाले लोग प्रवेश लेते हैं और कोर्स पूरा होने के बाद बाबा गिरगिटलाल का अंधाधुध पालन करने लगते हैं। 

वे अगर सुबह को रात, पानी को आग और इंडिया को भारत कहें तो हमें वही सही लगता है। वे इतने परमज्ञानी है कि उन्होंने इंटर के बाद प्लस टू का कोर्स किया है। ऐसे बाबा के मार्ग पर चलकर भुखमरी, लाचारी, बेरोजगारी, बलात्कार, भ्रष्टाचार जैसे बेफिजूल के मामलों से मुक्ति मिलती है।

मेरा महत्वपूर्ण योगदान यह है कि मैं गिरगिटलाल के आदेशों का पालन करता हूँ। उनके खिलाफ बोलने वाले को कुत्ते से भी तेज काटने को दौड़ता हूँ। आजकल कुत्ते मुझे देखकर डरने लगे हैं। निस्संदेह मुझसे बड़ा कुत्ता उनकी नजर में कोई नहीं होगा। मैं तो आई एन डी आई ए जैसे अक्षर एक साथ देख लेता हूँ, तो मुझे फिट्स (दौरे) आने लगते हैं। इसलिए भारत शब्द लिखा रुमाल अपने पास रखता हूँ। इसे सूँघ-सूँघकर इंडिया की बदबू से दूर होने का प्रयास करता हूँ। 

परसों तक मैं नोट से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में से इंडिया शब्द रबड़ से रगड़-रगड़कर मिटाने की कोशिश में कई नोट फाड़ डाले। वह तो भला हो पड़ोसी का जिसने मुझे बताया कि तुम्हें इतनी जहमत उठाने की जरूरत नहीं है। बाबा गिरगिटलाल फिर से लाइन में खड़ा करने वाले हैं।

अब आइये घर के बाहर का भी कुछ बताता चलूँ आपको, वरना कहोगे कि अधूरी जानकारी दी। घर से निकलते ही जितने भी इंडिया के पक्षधर दिख जाते हैं, उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इंडिया मतलब विदेशी, भारत मतलब देशी। मैंने सभी को इंग्लिश छोड़कर देशी पीने का सुझाव दे दिया है। जो नहीं पीते, उन्हें जबरदस्ती देशी पिलाकर भारत का डिएनए उनमें ठूँसने का भरसक प्रयास किया है। 

आईआईटी, आईआईएम, इसरो, शाइनिंग इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, ये इंडिया वो इंडिया को हमने बेकार ही ढो रहे थे। अब उनमें भारत जोड़कर शुद्ध देशभक्ति का प्रतीक बना दिया है। मेरी लड़की का नाम इंदु है,इसमें भी वे सभी अक्षर हैं जिनसे मुझे सख्त नफरत है। इसलिए उसका नाम भारती कर दिया है। वैसे मैं यह सब आपको इसलिए बता रहूँ कि मेरे कार्यालय के नाम के साथ इंडिया जुड़ा है। 

मैंने यह निर्णय कर लिया है कि जब तक ऑफिस का नाम भारत नहीं हो जाता तब तक दुनिया को यूँ बैठकर भारत बनाम इंडिया का ज्ञान दूँगा। भले चाहे इसके लिए कल की तरह मुझे निलंबन पत्र ही क्यों न मिले। मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारत देश की सभी समस्याओं मूल इंडिया शब्द है। भारत शब्द को देखते ही गरीबी, बेकारी, लाचारी, भ्रष्टाचार, बलात्कार जैसे मुद्दे रफू चक्कर हो जायेंगे। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार