झूठा अपनापन

हे कुछ लोग ऐसे

जो मेरे मुँ पर मेरे

पीठ पिछे करें बाते

मिठा मिठा बोल जाते


झूठा अपनापण जताते

हम न उन्हें पहचान पाते

ये वही हे करीबी जो तेरे

अच्छा होने का नाटक करे


पता भी हो सब तुझे

बोलकर न दिखा उसे

खामोश रहना कर पसंद

सुनकर करले कांन बंद


बनले दुरी तू उन सबसे

जो हो बुरा तेरा यही चाहते

अपना अच्छा कर्म करता जा

हिसाब उसका एक दिन होगा


कोई बुरा तो बुरा ही सही

तू अच्छा हे तो अच्छा रह

उसका बरताव तू न बदल

ना उसे बहस करने निकल


कु, कविता चव्हाण, जलगांव, महाराष्ट्र