झूठे आंसू।

आज़ मिसेज सरोज महेश्वरी के निधन की समाचार नवनीत नगर की सुर्खियां बनी हुई थी। हो तो क्यों न हो, वो प्रसिद्ध समाजसेविका के तौर पर ख्याति प्राप्त कर नवनीत नगर की आन, बान और शान बनी हुई थी। नवनीत नगर के प्रसिद्ध सहनी महाविद्यालय की प्राचार्या तो थीं ही स्थानीय रोटरी क्लब की अध्यक्षा भी थीं।

तीन साल से कैंसर से पीड़ित मिसेज  सरोज महेश्वरी समाज की जानी मानी हस्तियों में शुमार एक प्रखर वक्ता और समाजसेविका थी। इसलिए उनके निधन से नवनीत नगर में शोक की धार कुछ ज्यादा थी।

अस्पताल से शव के आते ही मातमी सन्नाटा पसर गया था। घर और परिवार के अलावा शहर के बुद्धिजीवियों की भीड़  लगने लगी थी।

सब जगह बस मिसेज सरोज महेश्वरी के गुणों की चर्चा हो रही थी।

बस एक महत्वपूर्ण रिश्तेदारों में मिसेज महेश्वरी की बड़ी  बहन

सन्तोष महेश्वरी के आने का  इंतजार हो रहा था। कारण दोनों बहनों के सम्बन्ध अटूट से थे।

घर में लगभग सब रिश्तेदारों के द्वारा अंतिम श्रद्धांजलि दी जा चुकी थी।

फ्लाइट विलम्ब से होने के कारण यहां सन्तोष महेश्वरी के आने में देर हो रही थी।

फिर जैसे ही घर के सामने कैब रूकी ,लोग समझ गए कि हो ना हो सन्तोष महेश्वरी ही होंगी।

अपने पति नरेश महेश्वरी और बाल- बच्चों के आते ही फिर रोना- धोना शुरू हो गया।

सन्तोष महेश्वरी तो अपनी छोटी बहन सरोज महेश्वरी के शव को पकड़कर रोये जा रही थी।

बार- बार समझाने पर भी नहीं मान रहीं थीं,बस कहतीं थी कि मुझे तो अपनी बहन के साथ ही जाना है।

रोते-रोते उसने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि उसके पति के आंखों से भी आंसुओ की बौछार  होने लगीं।

फिर समझा-बुझाकर शव को अस्पताल से मंगाए गए मुक्तिधाम वाहन में रखा गया। मुक्तिधाम वाहन के आंखों से ओझल होने तक ग़म की कशमकश बनीं रहीं।

धीरे -धीरे सबकुछ सामान्य हो गया।

छः -सात घंटे के बाद शव को अंतिम रूप में श्मशान घाट में विदाई दी गई।

थके हुए सब लोग घर लौट आए। फिर घर के सामाजिक ताना-बाना को रस्म रिवाज से पूर्ण करने के उपरांत पड़ोसी नन्दलाल अग्रवाल सेठ जी के यहां से घर के सम्पूर्ण सदस्यों के लिए तैयार भोजन को परोसने का काम प्रारंभ हुआ।

सात -आठ घंटे के बाद श्मशान घाट से लौट कर आएं पुरुषों के साथ ही बड़े कमरे में खाना खाने की व्यवस्था की गई।

आज़ काफी समय के बाद यह पहला मौका था जब स्त्री -पुरुष साथ साथ खाना खाने बैठे थे।

सब लोग अपने-अपने थाल में परोसे गए भोजन खाने में मशगूल थे।

परन्तु आज़ सरोज महेश्वरी के अन्त्येष्टि के आठ घंटे बाद ही सन्तोष महेश्वरी ग़म भूल चुकीं थीं। पहले निवाला  लेते ही बोली, क्या यह कोई खाना है ?

बिना स्वाद और मसाले का। परिवार के सब लोग लोग हतप्रभ हो गये।

फिर सन्तोष महेश्वरी अपनी भतीजी सुनंदा महेश्वरी को हाथ धोकर आचार लाने का इशारा करने लगीं।

भोजन करते समय लोग   उसकी झूठी क्रंदन पर धीरे-धीरे बातें करते हुए उनके दिखावे की रूलाई पर सब लोग कोसने लगे थे। आज़ परिवार वालों लों को यह ज्ञात हो गया था कि यह सन्तोष महेश्वरी का महज़ एक नाटक ही था।

आज़ आठ- नौ घंटे में ही सबलोग सन्तोष महेश्वरी के झूठे आंसु का राज़ जान चुके थे।

सब धीरे -धीरे कहने लगे कि वाह क्या खेल खेली है सन्तोष महेश्वरी ने !

दिखावे की आंसु बहाने की।

डॉ ०अशोक,पटना,बिहार।