वो बयां करते इश्क को जबानी भी

कोई  समझे निगाहों की छेड़खानी भी

वो बयां करते  इश्क को जबानी भी


हकीक़त के लिबास ओढ़ते जब भी

याद आये ख्वाहिशों की रवानी भी


रफ्ता-रफ्ता दौड़ रही  ज़िन्दगी की घड़ी

अफसानों की बारात होती है जवानी भी


कुछ  किस्से जमा कर रखे हैं अदब से

छोङ जायेंगे उनमें अपनी  निशानी भी


अम्मी के आंचल  से  लिपटकर रोये

गुङिया कभी  होती यूं  सयानी  भी


खंजरों ने रचा मुकद्दर का हुस्न 

कुबूल है  ऐसी  मेहरबानी  की


ख़ते-तकदीर अपनी संवार लो जनाब 

जिन्दगी  रात  है और रातरानी भी 


उमा पाटनी (अवनि)

उत्तराखण्ड (पिथौरागढ़)