"बुरे कर्मों का श्राद्ध करो"

मूल श्राद्ध तो करते हो बस एक और श्राद्ध कर लो,

अपने मन की गंदगी और बुरे कर्मों का श्राद्ध कर लो।


ना करो किसी पर जुर्म मन से मिटा दो दिलों की दूरियां,

हाथ थाम कर चलना सीखो, ना करो कोई भी अन्याय।


गरीबों को भोजन खिला कर अपने मन को शांति दो,

ना लूटो इज़्ज़त स्त्री की, ना ही निर्धन का घर संसार।


यदि मिटाना चाहते हो मन का बैर तो मिलकर साथ रहो,

खत्म करो जातिवाद सब को दो एक सा मान सम्मान।


भ्रष्टाचार की मूल को नष्ट करके नित नूतन बस न्याय करो,

करते हो तर्पण तो, कर लो अपने अंदर की बुराईयों को।


सच्ची श्रद्धा से करते हो जो पूजा अर्चना ईश्वर की,

तो सबसे पहले माँ के चरण छूकर, नेकी की राह चलो।


ना थोपो नियम कानून, स्वतंत्र विचारो का आदान प्रदान करो,

देश में हो सुदृढ़ व्यवस्था, चापलूस नेताओं को साफ करो,


अपने अंदर की अंतर्रात्मा की आवाज सुनो,और इन्साफ करो,

बड़ो का मान, बुजुर्गों की सेवा करके आशीर्वाद प्राप्त करो।


राह पड़े मनुष्यों की और जीव जंतु के इलाज का इंतजाम करो,

सही समय पर चिकित्सक से इलाज करा कर नेक काम करो।


मन मे ना हो श्रद्धा तो किस काम की पूजा आराधना,

मनवांछित फल चाहिये तो सच्ची रहनी चाहिए मनोकामना।


मूल श्राद्ध तो करते हो, बस एक और श्राद्ध कर लो,

अपने मन की गंदगी, और बुरे कर्मों का श्राद्ध करो।


स्वरचित और मौलिक रचना 

पूजा गुप्ता मिर्जापुर उत्तर प्रदेश