मानसिक तनाव एवं आत्महत्या की बढ़ रही प्रवृत्ति समाज के लिए चिंताजनक

आये दिन समाचार पत्रों में आत्महत्या के खबर पढ़ने को मिलती है, आत्महत्याओं की घटना का बढता ग्राफ देश में एक बड़ी चुनौती की ओर इशारा करती है l आधुनिकता की दौड़ में या किसी न किसी आभाव में आकर लोग आये दिन अवसाद में होते जा रहे है, परिणामस्वरूप अपनी मानसिक तनाव को संतुलित न कर पाना मुख्य कठिनाई है, मानसिक तनाव किसी भी उम्र में हो सकती है इसमें अधिकतर युवा वर्गों में इसकी तीव्रता अधिक देखने को मिलती है । 

परन्तु इस घटना में युवाओं से लेकर बूढ़े तक अपनी जीवन लीला समाप्त करने की सनक में झुलझते हुए मिल जायेंगे l वर्तमान परिवेश में संघर्षो एवं चुनौतीपूर्ण माहौल एवं तनावग्रस्ता का बाजार इतना बढता जा रहा कि इस जघन्य अपराध को करने के लिए नहीं सोचते है l आज सभी की जिन्दगी इतनी भागदौड़ भरी हो गई है अक्सर लोग मानसिक तनाव में रहने लगे हैं। मानसिक तनाव की वजह से आत्महत्या करने की घटनाएं बढ़ रही हैं। 

आत्महत्या की घटना में देखा गया है कि लोग पारिवारिक विवाद को लेकर तनाव में रहे थे तो कोई कारोबार में नुकसान, बेरोजगारी, आर्थिक कमजोरी, धोखाधड़ी से ग्रसित, कर्ज के जाल में फस जाना, प्यार न मिल पाना या प्यार में धोखा आदि और कई कारण हो सकते है जिससे लोग अपने आप को इतना तनाव महसूस करने लग जाते है कि आत्महत्या करने को लेकर अपनी सोच बना लेते है और ऐसे हालात में लोग अपनी जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं। इस प्रकार आत्महत्या करने की कई घटनाएं सामने आ चुकी है। 

आत्महत्याओं से जुड़े आकडे दिनोंदिन बढ़ते ही नजर आ रहे है, आत्महत्या की बढ़ रही प्रवृत्ति समाज के लिए चिंताजनक विषय है, सरकार के साथ-साथ हम सब को इस समस्या से निपटने के लिए उचित प्रयास करने की आवश्कता है ।

हाल ही में जारी हुई NCRB नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट में मप्र आत्महत्या के मामले में देश में महाराष्ट्र, तमिलनाडु के बाद तीसरे नंबर पर है।  साल 2021 में प्रदेश में कुल 14965 लोगों ने खुदकुशी की है, यानी हर रोज 41 लोग जान दे रहे हैं। मन को झकझोर कर देने वाली बात यह है कि  यह है कि प्रदेश में पिछले तीन सालों में सामूहिक आत्महत्या के बहुत से मामले सामने आए हैं। 

आत्महत्या की यह प्रवृत्ति ऐसा नहीं है कि किसी विशेष क्षेत्र या बसाहट में हो यह घटना छोटे शहरों और गांव में रहने वाले परिवार तक शामिल हैं। यदि इन घटनाओं के कारणों की समीक्षा करें तो अधिकतर घटनाओं में समान कारणों में ये देखा गया है कि अधिकतर परिवारों के आत्महत्या की वजह आर्थिक तंगी और कर्ज रहा । एक बात और समान रूप से देखी जा सकती है है कि एकल परिवार में यह अवसाद की संख्या अधिक देखी गई है l

कोरोना काल में तनावग्रस्ता की संख्या में अच्छाखासी बढोतरी देखने के लिए मिली है, काई दैनिक मजदूरों की मजदूरी चली गई, छोटे-बड़े व्यापारियों का व्यापार प्रभावित होने, बेरोजगारी बढ़ने, पारिवारिक उलझाने, आर्थिक तंगी आदि को लेकर तनाव बढ़ा है। 

इसके अलावा घरेलू पारिवारिक समस्याओं को लेकर भी लोग तनाव में रहते हैं। इन सबके चलते लोगो में असमय मानसिक तनाव की तीव्रता में इजाफा हुआ है इस कारण से लोग गलत कदम उठा लेते हैं और आत्महत्या की ओर रुख करने से नहीं झिझकते । यह स्थिति समाज के लिए अत्यंत चिंताजनक है। समाज के साथ सरकार को भी इसके बचाव के लिए उचित एवं कारगर कदम गंभीरता से उठाने की आवश्यकता है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक अवसाद और तनाव के कारण लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और जब व्यक्ति को परेशानियों से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता, ऐसे में वह आत्महत्या जैसा हृदयविदारक कदम उठा बैठता है। हालांकि जिन लोगों का मनोबल मजबूत होता है, वे प्रायः विकट परिस्थितियों से उबर भी जाते हैं लेकिन अवसाद के शिकार कुछ लोग विषम परिस्थितियों से लड़ने के बजाय हालात के समक्ष घुटने टेक स्वयं को मौत के हवाले कर देते हैं। आत्महत्या करने वालों में करीब 64 फीसदी यानी 1.05 लाख लोग ऐसे हैं, जिनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम थी।  

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक बीते वर्ष देश में कुल 164033 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 118979 पुरुष, 45026 महिलाएं और 28 ट्रांसजेंडर थे। आत्महत्या करने वाली आधी से भी ज्यादा 23178 गृहिणियां थी जबकि 5693 छात्राओं और 4246 दैनिक वेतनभोगी महिलाओं ने आत्महत्या की। गृहिणियों द्वारा आत्महत्या के सर्वाधिक मामले तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में क्रमशः 3221, 3055, 2861 दर्ज किए गए, देश में 2020 में आत्महत्या के कुल 153052 मामले दर्ज हुए थे और 2021 में आत्महत्या की दर में 7.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई।

आत्महत्या को रोकने की जिम्मेदारी के लिए हम सब को कंही न कही परिवार, समाज और नजदीकी लोग काफी बड़ी भूमिका निभा सकते है l परन्तु कई बार हमारे नजदीक होने के बाद भी हमें अपने दोस्तों और परिचितों के मानसिक तनाव को भलीभांति समझ नही पाते है, और न ही अवसाद से ग्रसित व्यक्ति अपने हालत किसी के सामने उजागर करता है। 

कारण लोगो के सामने उसकी इज्जत धूमिल होने का डर, लोग मुझे क्या समझेंगे आदि बाते । हालांकि माना जाता रहा है कि आत्महत्याओं को रोकना सरकार का काम नहीं है बल्कि इसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेदारी समाज और परिवार की है लेकिन आत्महत्या के बीते वर्ष के आंकड़े समाज के साथ-साथ सरकार के समक्ष भी गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। 

दरअसल देशभर में लोग यदि इतनी बड़ी संख्या में मौत को गले लगाने को विवश हो रहे हैं तो यह मानने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि इसके लिए कहीं न कहीं हमारा समाज और सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। भले ही सरकार द्वारा रोजगार को लेकर हालात बेहतर होने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन वास्तविकता यही है कि महंगाई और बेरोजगारी ने गरीब और मध्यवर्ग की कमर तोड़ कर रख दी है। गरीब व्यक्ति के पास खाने को कुछ नहीं होगा, उसके पास रोजगार का कोई साधन नहीं होगा या वह भारी-भरकम कर्ज के बोझ तले दबा होगा ऐसे में न चाहते हुए भी अवसाद का शिकार होकर वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर होगा।

देश में आत्महत्या के मामलों का ग्राफ साल दर साल ऊपर क्यों जा रहा है, इसे लेकर न केवल सरकारों को बल्कि समाज को भी गंभीरता से विचार करना होगा और इसके कारणों के निदान के प्रयास भी करने होंगे, तभी आत्महत्या के मामलों में कमी की अपेक्षा संभव है। आत्महत्या जैसे जघन्य कृत्य बचने के लिए लोगों को अपने मन में नकारात्मक विचारों को नहीं आने देना चाहिए। जब मनुष्य अपने आप को अवसाद में पाता है तब ऐसे मामलो में स्वयं को सकारात्मक माहौल में रखना बड़ा कठिन होता है l 

इसके लिए अपने दोस्तों एवं परिचितों से बात जरुर करना चाहिए कभी-कभी अपनी व्यथा और कठिनाई बताने से कोई न कोई हल अवश्य ही निकलता है l बात करे अपने मन के विचार साँझा करे, इससे अवसाद में कमी आएगी l जब अपने आप को अकेला, नकारात्मक विचारो से घिरा हुआ पाए तो सकारात्मक प्रेरणादायक विषयों को पढ़े व देखें, इसे में मन को शांत करने वाले संगीत सुनने से मन शांत होगा एवं नकारात्मक विचार दूर होंगे l

लेखक

श्याम कुमार कोलारे

छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश)

ईमेल: shyamkolare@gmail.com