"शिक्षक की शिक्षा"

शिक्षक शिक्षा देते हम को, जीवन ज्योति जलाते।

अज्ञानी को राह दिखाते, आगे उसे बढ़ाते।।


इधर उधर की बातें छोड़ो, ईश्वर से मिलवाते।

उज्ज्वल भविष्य बनता सब का, ऊँचाई चढ़ जाते।।

एक सभी बच्चों को रखते, ऐनक आँख लगाते।

ओजस्वी जीवन में लाते, अवसर भी दिलवाते।।


अंकुर से वो वृक्ष बनाते, अहम कभी ना पाले।

दीपक बन कर जलते रहते, जग में करे उजाले।।

कर्तव्यों का पालन करते, खुशियाँ भी फैलाते।

गगन चूमते जब भी बच्चे, घी के दीप जलाते।।


चंचल मन रखते हैं शिक्षक, छल को दूर भगाते।

जीव जंतु से प्रेम सिखाते, झगड़ा शांत कराते।।

टूट टूट कर खुद ही बिखरे, ठोकर भी वो खाते।

डटे रहे बच्चों के खातिर, शिक्षक वो कहलाते।।


ढूँढ ढूँढकर देते उत्तर, पल में फल दिखलाते।।

तोड़ भेद की सभी बेड़ियाँ, थोड़ा कष्ट उठाते।।

दान धर्म है बहुत जरूरी, स्वर्ग नरक को जानें।

प्रतिदिन मिलकर करो प्रार्थना, मानव को पहचानें।।


फल की चिंता कभी न करना, समय बहुत है होते।

भटक राह में हम हैं जाते, मंजिल पाने रोते।।

यश को पाओ रौद्र छोड़ दो, लक्ष्य अगर है जाना।

वैभवशाली मानव बनना, अच्छी शिक्षा पाना।।


षडयंत्रों को दूर भगाना, साहस भी दिखलाना।

हार कभी मन में जागे तो, क्षति कभी न पहुँचाना।।

त्रस्त नहीं होते हैं शिक्षक, गुरू मंत्र दे जाते।

ऋषि मुनि सा तप करते रहते, नैया पार लगाते।।


रचनाकार

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com