क्या हुआ ओ गिरने वाले

गिरना भी बड़े कमाल की चीज़ है। मानव की सभी क्रियाओं में गिरना भी एक क्रिया है। कुछ लोग इसका लाभ उठाते हैं, तो कुछ नुकसान। कुछ लोग इसे बहादुरी मानते हैं, इसीलिए किसी शायर ने कहा है- गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले। अब शायरी तो शायरी होती है। समझने वाले ही समझते हैं। जिन लोगों को शहसवार, मैदान-ए-जंग, तिफ्ल आदि समझ में नहीं आया उन्होंने इसकी टीका अपने हिसाब से कर ली और जहाँ-तहाँ गिरने लगे। कोई इधर से गिरा, कोई उधर से।

कोई ऊपर से गिरा तो कोई नीचे से। गिरने की इस वानर क्रीड़ा का मजा कुछ दिन तक बाजार में बना रहा। फिर बाद में लोग ऊबिया गए। अब वे गिरने में सृजनात्मकता लाना चाहते थे। परिणाम यह हुआ कि कोई गड्ढे में गिरा तो कोई कुएँ में। कोई उल्टे मुँह गिरा तो कोई औंधे मुँह। कोई नजरों से गिरा तो कोई खुद से। अब गिरना इतना क्रेजी और वैरल हो चुका था कि सब इसमें जी भर-भर के मजा ले रहे थे।

गिरने का  यह हाई-प्रोफाइल पावन कार्य उस समय सुर्खियों में आया जब योगगुरु हाथी से गिर पड़े। योगगुरु की कर्मठता, कर्तव्यनिष्ठता व समर्पण की भावना जगजाहिर है। वे जहाँ चाहे वहाँ, जब चाहे तब अपनी योगक्रीड़ा आरंभ कर देते हैं। उन्होंने अपने योग के माध्यम से दुनिया भर में भारत की जो पहचान बनाई है, उसे कौन भूल सकता है। शायद यह बात हाथी को पता नहीं थी। उसने बाबा जी को गिरा दिया।

 लेकिन बेवकूफ हैं वे लोग जो इस गिरने की अहमियत को नहीं समझते। बाबा जी का बस चले तो वे पत्थरों से भी योग करवा दें। वह तो भला हाथी था। वह अपने आपको कैसे रोक सकता था। बाबा जी की देखा-देखी उसने अनुलोम-विलोम कर दिया और बाबा जी गिर गए। आश्चर्य की बात तो यह है कि बाबा जी गिरे तो गिरे किसी को योग सिखाकर गिरे। वरना दुनिया में आए दिन कितने ही लोग बेवजह में गिरते रहते हैं। सर्फ एक्सल के दाग़ अच्छे हैं की तर्ज पर यदि गिरने से किसी को लाभ होता है तो गिरना अच्छा है।   

गिरने का यह भूत कई और मामलों पर भी सवार हुआ। बदहाली, भुखमरी, बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दे क्रमशः अपने नाम गिरहाली, गिरमरी, गिरोजगारी के रूप में बदलकर गिरने और डुबकी लगाने के लिए इतने उतावले हुए जा रहे थे जैसे कुंभ का मेला लगा हो। गिरने के मामले में सेंसेक्स तो इन सब का बाप था। यह तो ऐसा गिरा जैसे ओलंपिक्स में गिरने की किसी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतना हो। लेकिन ओलंपिक्स में जाकर स्वर्ण पदक जीतने की यह लालसा भी औंधे मुँह गिर गयी।

 पता चला कि जापान ने कोरोना वायरस के चलते ओलंपिक्स खेलों की प्रतियोगिता रद्द कर दी है। खुन्नस कहें या भड़ास जो भी हो, सेंसेक्स के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका था। इसीलिए उसने तय किया कि जब तक ओलंपिक्स में स्वर्ण पदक जीत नहीं लेता, तब तक गिरने का यह अभ्यास चलता रहना चाहिए। इसीलिए आए दिन वह गिरता जा रहा है। उसके इस कठोर अभ्यास को देखकर भारतीयों को पूरा विश्वास हो गया है कि इस देश को गिरने में एक स्वर्ण पदक मिलना ही मिलना है। परिणाम यह हुआ कि सेंसेक्स में अहंकार की भावना बढ़ गई।

इस कान, उस कान सेंसेक्स के स्वर्ण पदक जीतने की खबर सेक्स वहशियों उर्फ बलात्कारियों तक पहुँची। उन्हें लगा हमने निर्भया, दिशा जैसे असंख्य बलात्कार कर अपने जमीर से गिरने का जो कीर्तिमान स्थापित किया है, उसे यूँ ही किसी को रौंदने क्यों दे! उन्होंने भी जमकर बलत्कार करना आरंभ किया। देश के इस कोने से लेकर उस कोने तक हाथरस जैसे दिल दहला देने वाले और मनुष्य की मनीषा को गिराने वाले कांडों की झड़ी लगा दी कि फिर कभी लोग गिरने-गिराने में उनकी होड़ न कर सकें। कुल मिलाकर देश में गिरना विकास का सफलता सूत्र बन गया और एक नारे का ईजाद हुआ – जो गिरता है वही बढ़ता है।  

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’