मध्यप्रदेश के पेंशनर्स को 34% महंगाई राहत की दरकार... !

बार-बार महंगाई राहत की लेटलतीफी के काले अध्याय का समापन हो, पेंशनरों का शोषण समाप्त हो, वे गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं, महंगाई की त्रासदियों से त्रस्त हैं, परिवार समाज की  जिम्मदारियों के बोझ तले झुक रहे हैं, मानसिक तनावग्रस्त हैं, निम्न आर्थिकस्तर व  उपेक्षात्मक बोझ तले दबे हैं, मध्यप्रदेश सरकार इन्हें 34 प्रतिशत महंगाई राहत देकर इन वरिष्ठ नागरिकों का कल्याण कर आने वाले समय के लिए इनकी दुआऐं प्राप्त करें, मध्यप्रदेश के पेंशनरों की शासन से यही दरकार हैं।

पेंशनरों का मानना है कि जब छत्तीसगढ़ सरकार अपने पेंशनर्स  को मध्यप्रदेश सरकार की सहमति के बिना 6 प्रतिशत की वृद्धि कर 28 प्रतिशत मंहगाई राहत स्वीकृत कर भुगतान कर रही है तो स्पष्ट है कि पेंशनर्स को महंगाई राहत स्वीकृत करने में छत्तीसगढ़ सरकार  की सहमति की आवश्यकता नहीं है। इसलिए मध्यप्रदेश सरकार अपने पेंशनर्स को 34 प्रतिशत महंगाई  राहत स्वीकृत करने के आदेश शीघ्र जारी करे और इसका भुगतान एक मुश्त ऐरियर्स सहित दीपावली पूर्व करे। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के पेंशनर्स की महंगाई राहत के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है।

कुछ समय पूर्व धारा 49 और आपसी सहमति का बहुत बार जिक्र किया गया। समाचारों में भी यह मसला बहस का विषय बना। कई बार सहमति पत्र भेजने व सहमति लेने का जिक्र आया। पिछली राहत के आदेशों के जारी होने के पूर्व भी इसका जिक्र सहमति पत्र में डाला गया।

कई अन्य बातें चर्चा में रही कि उक्त धारा में सहमति लिए/दिये जाने का जिक्र नहीं है बल्कि हिस्सेदारी प्रकट की गई कि मप्र 74 व छग 26 फीसदी हिस्सेदारी देगा वह भी सन् 2000 में राज्य विभाजन के समय के पूर्व सेवानिवृत्त हुए पेंशनरों के लिए, इसमें महंगाई राहत पेंशनरों की रोकी जाये इसके लिए, इसका जिक्र नहीं था। (महंगाई राहत पेंशन पर दी जाती हैं महंगाई वृद्धि प्रतिशत की गणना करके यह पेंशन से अलग दी जाती हैं तो यह पेंशन नहीं पेंशन के साथ अलग से दी गई राशि है।) तो जब यह स्पष्ट हैं तो राज्य विभाजन के बाद के पेंशनरों के लिए महंगाई राहत रोकने का कोई औचित्य ही नहीं है।

यदि सन् 2000 के राज्य विभाजन के पूर्व के पेंशनरों की बात की जाये तो आज 22 वर्ष बाद उस समय और उसके पूर्व के पेंशनर्स बचे ही कितने होंगे, इतनी संख्या भी नहीं बची हैं की उनकी गिनती लगाई जाये। लगभग सभी 82 वर्ष से ऊपर वय के होंगे। जो मुश्किल से पेंशनर्स की संख्या का पांच प्रतिशत के करीब होंगे। इस कारण से मंहगाई राहत देने में सारे पेंशनरों को देरी की जाये तो यह एक अनुचित सजा के समान ही होगा।

चर्चा में यह भी आया की केंद्र से बहुत समय पूर्व, यह मसला सामने आने पर यह पत्र आया था कि धारा 49 और पेंशनर्स की महंगाई राहत मामले में मप्र, छग अपना स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। यह समझा जा सकता है कि दोनों राज्य यदि चाहे तो अपने अनुसार महंगाई राहत दे सकते है।

सभी का समीक्षात्मक पहलू है कि राज्यपुनर्गठन आयोग की धारा 49 से प्रशासन के जिम्मेदारानों ने शासन को भ्रमित कर पेंशनरों की महंगाई राहत का नुकसान ही किया है। लगता है वे खुद भी भ्रमित है। तो यह धारा अब इस समय औचित्यहिन हैं। यदि यह 49 हैं तो इसे अमान्य, शून्य घोषित किया जाये नहीं कर सकते तो ऐसा मान लिया जाये और मध्यप्रदेश के पेंशनर्स को नियमित कर्मचारियों के समान पूरी 34 प्रतिशत महंगाई राहत देकर उनका आर्थिक, मानसिक, शारिरिक तनाव दूर मध्यप्रदेश सरकार को करना चाहिए। इसके अलावा इस बहस, इस भ्रम को खत्म करना चाहिए, सही स्थिति क्या है, इसका आखिरी तोड़, अंतिम निदान क्या किया हैं, स्पष्टतौर पर बताना चाहिए।


                          - मदन वर्मा " माणिक "

                            इंदौर, मध्यप्रदेश

                           मो. 6264366070