"देश की बुनियाद खोखली हो रही है"

एक युग था जब इंसान को इंसान के प्रति  भाईचारा, सद्भाव, अपनापन और प्रेम था। किसीके लिए कुछ कर गुज़रने की भावना थी, परिवार में शांति थी, पड़ोसियों से सुचारू व्यवहार था, दो कोमों के बीच सामंजस्य था और देश में अखंडता का एहसास होता था। वक्त के साथ इंसान की सोच भी बदल गई, स्वभाव भी बदल गया और व्यवहार भी बदल गया। 

क्यूँ फैल रही है एक इंसान के दिल में दूसरे इंसान के प्रति नफ़रत, कौन फैला रहा है जात-पात का सियापा? क्यूँ इंसान धर्म को, देश को और राष्ट्र ध्वज को बाँट रहा है। क्या रखा है जात-पात में। ईश्वर ने सबको मनुष्य बनाकर धरती पर भेजा है, जन्म लेते वक्त हमें कोई चाॅइस नहीं दी जाती, कि बोलो कौनसे मज़हब में, कौनसे घर में, कौनसे माँ-बाप द्वारा पैदा होना पसंद करोगे। हम इंसान की औलाद है इंसान बनने के बदले जानवर होते जा रहे है। चार दिन की ज़िंदगी है कल क्या होगा कोई नहीं जानता। क्यूँ हम पीढ़ियों से सिर्फ़ जाति देखते आ रहे है हर व्यक्ति में इंसान और इंसानियत देखने की कोशिश तक नहीं करते।

हल्की सी आदत तो ड़ालिए, किसी इंसान के भीतर झाँक कर मनुष्यता ढूँढने की। आजकल राजनीति ने ऐसा घिनौना रुप ले लिया है कि धर्मांधता का धुआँ वहीं से उठता दिख रहा है। जात-पात और धर्म के नाम पर सियासत करते, निम्न स्तरीय हरकतों पर उतर आए है। दो कोमों के बीच वैमनस्यता फैलाकर अपनी रोटियाँ सेक रहे है। धर्म नाम की लाॅलिपाॅप थमा कर, बिना वजह इंसान को इंसान का दुश्मन बना रहे है।

तिरंगा जो देश के हर नागरिक की आन, बान और शान है उस पर राजनीति कितनी शोभा देती है। 

नमाज़ पढ़ने पर सियासत, हनुमान चालीसा पर बवाल। हर छोटी-बड़ी बात पर विपक्षों के विरोध और विद्रोह ने देश में अशांति का माहौल खड़ा कर रखा है। चाहे ओवैसी हो, राहुल गांधी हो, आम आदमी पार्टी हो, इनको एक ही आदत है, मौजूदा सरकार पर हर बात पर हल्के शब्दों में दोषारोपण, सरकार की टांग खिंचकर गिराना की कोशिश में खुद गिरते जा रहे है।

जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तब, दर असल धर्म से ऊपर उठकर हर नागरिक को इस तिरंगा यात्रा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। राहुल गांधी ने RSS पर बड़ा हमला कर दिया।  बिना नाम लिए उन्होंने ट्वीट कर कहा कि इतिहास गवाह है, 'हर घर तिरंगा' मुहीम चलाने वाले, उस देशद्रोही संगठन से निकले हैं, जिन्होंने 52 सालों तक तिरंगा नहीं फहराया। अब तिरंगा फ़हराने  का RSS से क्या लेना-देना। ये सारी जद्दोजहद महज़ कुर्सी और पार्टी बचाने के लिए होती है, किसीको देश की या आम इंसान की परवाह नहीं। 

नेताओं की बयानबाज़ी से प्रभावित होते सोशल मीडिया पर तू-तू, मैं-मैं करते लोगों को देखकर लगता है ये एक ही देश की प्रजा नहीं, बल्कि दो देशों के बीच जंग छीड़ गई हो ऐसा महसूस होता है। एक दूसरे की जात पर, कोम पर और भगवान पर ओछे शब्दों में गलत टिप्पणी करते आमने-सामने ऐसे आ जाते है, जैसे कट्टर दुश्मन हो।

अरे भै नेताओं का तो काम ही आपको इन सारी बातों में उलझाने का है, कम से कम आप तो अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके आगे बढ़िए। क्यूँ देश की अखंडता पर तलवार चलाने पर तुले हो। जात-पात और धर्मांधता वाली मानसिकता ने देश में नफ़रत की आँधी फैला दी है। मत बहको ऐसी फ़िज़ूल की बातों में आकर देश की बुनियाद खोखली हो रही है। ऐसे में आने वाली पीढ़ी को हम क्या देकर जाएँगे अगर सुद्रढ़ राष्ट्र और सुरक्षित भविष्य चाहते है तो एक बनों एकता में शक्ति है। वरना दुश्मन देश तो भारत को तोड़ने से रहे आंतर विग्रह ही देश के टुकड़े कर देगा।

  भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर