बरसे नैनन नेह जब, उपजे मन में प्यार |
चार दिवस की जिंदगी,प्रेम जगत का सार ||
प्रेम जगत का, मान भगत का, बढ़ता जाता |
मन के उपवन, बैठो भगवन, तुम हो दाता |
मन है हर्षित, प्रेम समर्पित, मन है तरसे |
दर्शन तेरे, रघुवर मेरे,नैना बरसे ||
प्यारी मन की भावना , पूरी हो जगदीश |
मेरी नेहिल साधना, कहता मन है ईश ||
कहता मन है,सुनते जन है, पुकारे |
दर्श तुम्हारे, नैन निहारे, सुन लो प्यारे ||
सबरी झूठे, प्रेम अनूठे, भक्तिन नारी |
हर्षित होता, मन है कहता,मन की प्यारी ||
उर में बसते राम जी, सीता प्यारी संग |
जीवन पूरित प्रेम से, सीखो जीवन ढंग ||
सीखो जीवन, सुंदर हो मन, मन हो मधुबन |
मंदिर जाना, दर्शन पाना,मन वृन्दावन ||
मन है अर्पित, प्रेम समर्पित, नाम अधर में |
सुंदर मूरत, प्यारी सूरत,बसती उर में ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश