अजब समय की चाल है देखो,
हाथों से फिसलती जैसे रेत है।
साथ हो गर तो जीवन सुखमय,
रूठे तो लगे कि बंजर खेत है।।
पलक झपकते हाल बदल दे,
ईश्वर भी होते नतमस्तक।
इसकी गाथा से अटी पड़ी है,
पुराण ग्रंथ इतिहास की पुस्तक।।
किसने सोची होगी यह बात,
बनकर बैरी आई थी रात।
बनते राजा जो अगले दिन में,
भटके चौदह बरस वो वन में।।
चौसर लेकर समय था आया,
बचा न कुछ भी राज पाठ।
भाई बने आपस में दुश्मन,
मचा युद्ध और रक्तपात।।
आर्यावर्त के थे महाराणा,
जिनका प्रताप राष्ट्र ने माना।
काटते जो शत्रु की बोटी,
खानी पड़ी घास की रोटी।।
ऐसा नहीं कि सिर्फ बुरा है,
ये समय अपने में खरा है।
खुशियां भी इससे मिली है,
बहुतों की तकदीर खिली है।
घनानंद का पाप बढ़ा तो,
समय ने गुरु चाणक्य चुना।
जंगल का इक आम युवा तब,
चंद्रगुप्त सम्राट बना।।
बढ़ा प्रकोप था मुगलों का जब,
समय की सीख दी जीजा मां ने।
लाए स्वराज तब वीर शिवाजी,
गौरव सारा भारत माने।।
समय बदलते देर ना लगती,
कारण है ये तथ्य विशेष का ।
चाय बेचता एक युवा जब,
महामात्य होता है देश का ।।
गया समय ना वापस आता,
आते हुए का नहीं है भान।।
अभी जो पल है पास आपके,
जियो उसी में बन "नादान"।।
रचनाकार
तुषार शर्मा "नादान"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
tusharsharmanadan@gmail.com