पर्व प्रेम का प्रतीक, छोड़ दो तुम ये लीक,
बातें नेह की सीख,स्नेह भाव भरिये |
प्रेम ही है संसार, करता भव सिंधु पार,
हृदय के बजते तार,प्रेम भाव धरिये ||
छोड़ दो सारे भोग, मिल जाये सर्व जोग,
दुखी रहे नहीं लोग, सहज बने रहिये |
गाओ प्रेम के गीत,कहे धर्म यही रीत,
मिल जाये सफल जीत, राम नाम कहिये ||
करते रहना पुकार, बोलो मन से विचार,
देखो नैना निहार,स्वागत मन करिये |
राम रंग अंग -अंग, चढ़े भक्ति भाव रंग,
अब चलूँ तेरे संग,धीरज अब धरिये ||
करलो अब तुम सुकर्म, धार लो ये निज धर्म,
छोड़ दो सकल अधर्म, ज्ञान ध्यान रखिये |
पर्व सर्व राम नाम, पूर्ण भाव श्याम नाम,
वृन्दावन परम धाम, हृदय प्रेम लखिये ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश