तोड़ तुमने मुझको , हासिल क्या कर लिया
मैंने तो टूटे अपने टुकड़ों में भी , रंग भर लिया।।
बिखरे मेरे हर टूटे टुकड़े मैं ही , उठाती चली गई
समेटे टुकड़ो को ही हीरा समझ कलम में भर लिया।।
जानती ही नहीं आज भी कितनी बार जुड़ टूटी हूं
हर बार हिम्मत दिखा , अपनी हिम्मत को स्याही कर लिया।।
जब-जब टूटी मैं , तब-तब ओर भी हिम्मत बड़ती गयी
तुमने तो तोड़ हर बार मुझको मेरा ही नाम रौशन कर दिया।।
कभी हिम्मत की स्याही से लिखे शब्द पढ़ लोग हसते थे
आज उन्हीं लोगों ने मेरा नाम बदल दर्द-ए शायरा कर लिया।।
हीरे से मेरे टुकड़े , हिम्मत की स्याही की
दोस्ती थी घनी इनकी दोस्ती के प्रगाढ़ किस्सों ने सबका मन हर लिया।।
वीणा आज सुर , लय, ताल संग शब्दों में सजाती खुदको
वीणा के सुरों ने मिल महफ़िल को अपना परवाना कर लिया।।
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र