गजल- अज्ञात नहीं रखते।

अच्छाई अपनाकर, खामियां भूलाकर,

हम किसी से शिकायत नहीं रखते।

उदारता की तो है कमी इस दुनिया में,

हम किसी से भेदभाव नहीं रखते।

परिंदों सी उड़ान, नम्रता की जुबान,

दोनों को हम मजबूती से है रखते।

खिली हुई मुस्कान, कामयाबी की शान,

हम चेहरे से हटाकर नहीं रखते।

कोई एहसान और इंसानियत के काम

का हम कभी हिसाब नहीं रखते।

बर्दाश्त करने की हद, दिल में दर्द,

हम किसी को जताकर नहीं रखते।

किसी के निर्णय में, अपने हृदय में,

किसी तरह का एतराज नहीं रखते।

मंजिल की तलाश और पाने की आस में,

खुद को खुदा से नाराज नहीं रखते।

खुदा पर यकीन कर, 

खुद को बेहतरीन कर,

अपनी रूह से खुद को अज्ञात नहीं रखते।।


डॉ. माध्वी बोरसे।

राजस्थान (रावतभाटा)