योगी (त्रिभंगी छंद )

जब योगी कहते, सब जन सुनते,

मानें   बातें , है  सारी |

वो लक्ष्य दिखाते, सत्य बताते,

अनुपम उनकी, छवि न्यारी ||

तुम धैर्य धरो अब, राह चलो अब,

बढ़ते  जाना, घर छोड़े |

प्रभु आशा करना, उनको जपना,

भजते रहना, कर जोड़े ||


है मन संसारी,जगत दुखारी,

अब पार करो, तुम नैया |

योगी जन कहते,सच्चे मन से,

प्रभु   है   तेरे ,  खेवैया ||

यह नश्वर काया, झूठी माया,

मत तुम फँसना, अब प्यारे |

वो  है  करतारी, मुरलीधारी,

देंगे  दर्शन, वो  न्यारे ||


योगी जन त्यागे, प्रभु पद लागे,

भजते  जाते, मन वाणी |

वो वन में रहते, सुख दुख सहते,

 ध्यान लगाते, कल्याणी ||

मन उनका गंगा, तन सतरंगा,

 सच्चे  योगी, है ध्यानी |

प्रभु सुमिरन करते, भव से तरते,

 परम श्रेष्ठ है,वो ज्ञानी ||

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कवयित्री

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश