जब योगी कहते, सब जन सुनते,
मानें बातें , है सारी |
वो लक्ष्य दिखाते, सत्य बताते,
अनुपम उनकी, छवि न्यारी ||
तुम धैर्य धरो अब, राह चलो अब,
बढ़ते जाना, घर छोड़े |
प्रभु आशा करना, उनको जपना,
भजते रहना, कर जोड़े ||
है मन संसारी,जगत दुखारी,
अब पार करो, तुम नैया |
योगी जन कहते,सच्चे मन से,
प्रभु है तेरे , खेवैया ||
यह नश्वर काया, झूठी माया,
मत तुम फँसना, अब प्यारे |
वो है करतारी, मुरलीधारी,
देंगे दर्शन, वो न्यारे ||
योगी जन त्यागे, प्रभु पद लागे,
भजते जाते, मन वाणी |
वो वन में रहते, सुख दुख सहते,
ध्यान लगाते, कल्याणी ||
मन उनका गंगा, तन सतरंगा,
सच्चे योगी, है ध्यानी |
प्रभु सुमिरन करते, भव से तरते,
परम श्रेष्ठ है,वो ज्ञानी ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश