गुरु महिमा

गुरु  ज्ञान  का  भण्डार   है,

गुरु से ही जगमग ये संसार है।

गुरु की महिमा अपरम्पार है,

गुरु भवसागर कराता पार है।


             गुरु अँधकार में प्रकाश है भरता,

              स्वयं जलकर उजाला है करता।

              शिष्यों से रखता है बेहद लगाव

              गुरु शिक्षा का व्यापार नहीं करता।


गुरु की जिस पर हो कृपा,

उसका जीवन सँवर जाए।

गुरु    की    कृपादृष्टि   से,

कोयला कोहिनूर बन जाए।


               मैं  ईश्वर तुल्य  गुरु  का,

                गुणगान   कैसे   करूँ?

                मैं मूढ़मति चंद शब्दों में,

                 गुरु का बखान कैसे करूँ?


हे गुरुवर अपनी कृपादृष्टि,

मुझपर  बनाये  रखना।

आशीष भरा हाथ सदा,

मेरे सर पर सजाए रखना।


             सोनल सिंह"सोनू"

          कोलिहापुरी दुर्ग छ ग