अपूर्ण नहीं संपूर्ण प्रेम!

प्रेम मीरा की तरह पावन,

अश्रु धारा बहे जैसे सावन,

आजीवन किसी के इश्क में दीवानगी,

उसके बिना हर वक्त वीरानगी!


उन्हें पता ना चला,

कैसे पता चलता भला,

उनकी खुशी किसी में थी,

हमारी खुशी उन्हीं से थी!


हमें चाहिए उनकी सोहबत,

मतलब मैं, कैसी मोहब्बत?

उनकी मुस्कुराहट है जरूरी,

क्यों करें हम जी हजूरी!


प्रेम की पवित्रता में कैसे खो दूं,

उनकी खुशी मै, मैं कैसे  रो दूं,

जहां रहे वह खिलखिलाते रहे,

बस खुदा हमें उनसे मिलाते रहे!


अगर वह किसी और के हो जाए,

हमें कभी ना अपना पाए,

हम उन्हें फिर भी दिल से दुआ देंगे,

उनकी यादों को दिल में समेट लेंगे!


इश्क,मोहब्बत, प्रेम जिसे कहते हो तुम,

वह तो एक इबादत एवं मनोहर कुसुम,

वह नहीं तो उसको बनाने वाले से प्रेम करें,

क्यों ना हम उस ईश्वर, खुदा पर ही मरे!


उसे बनाने वाला उससे कहीं ज्यादा हसीन होगा,

यह ब्रह्मांड रचने वाला कितना बेहतरीन होगा,

क्यों ना आजीवन में उससे ही अब प्यार करूं,

उसी के इशारों पर जी लूं, और उसी पर मरू!!


डॉ. माध्वी बोरसे!

राजस्थान (रावतभाटा)