संत कबीर पर दोहे

गुरु कबीर को है नमन्,जिन ने बाँटा ज्ञान।

ख़ूब यहाँ पर रच दिया,सामाजिक उत्थान।।


सद्गुरु प्रखर कबीर थे,फैलाकर आलोक।

परे किया अज्ञान का,फैला था जो शोक।।


ऊँचनीच के भेद को,किया सभी से दूर।

हे!कबीर गुरुदेव तुम,बने जगत के नूर।।


ढोंग और पाखंड पर,करके सतत प्रहार।

सामाजिक समरूपता,का फैलाया सार।।


हे!कबीर तुम युगपुरुष,सारे जग की शान।

मानवता का कर सृजन,आप रचे उत्थान।।


झूठ,कपट को मारकर,हरण किया अविवेक।

ढाई आखर से किए,मानव सच्चे,नेक।।


मानवता की बात कर,दिखलाई नव राह।

अनुपम हो संसार यह,जस कबीर की चाह।।


कालजयी थे युगपुरुष,समकालिक आवेश।

थे कबीर आवेग इक,किया नवल यह देश।।


संत खरे थे,गुरु प्रखर,कबिरा बहुत महान।

युगों-युगों तक हे! प्रवर,पाओगे तुम मान।।


जैसे संत कबीर थे,दिखा नहीं कोय और ।

उनकी बातें चेतना,नव सुधार का दौर।।


-प्रो0 (डॉ0) शरद नारायण खरे