उड़ान

काश मुझे भी पंख मिल जाए,

उन्मुक्त गगन में मैं उड़ जाऊं।

जो करना चाहूं मैं कर लूं,

निर्बाध गति से आगे बढ़ जाऊं।

लेखनी मेरी हो प्रबल,

कृपा इतनी मुझ पर कर दो।

हृदय में सबके बसती जाए,

कल्पना मेरी हो सबल।

खुले आकाश में विचरण कर लूं,

कभी चांद कभी सूरज छू लूं।

तारों से मेरी हो चमक,

नील गगन को मैं तो छू लूं।

उड़ान भरने के लिए,

मेहनत में तो पूरी कर लूं।

तभी छूं पाऊं आसमा को,

सपने अपनी पूरे कर लूं।

मेहनत से सपने पूरे होते,

नील गगन को छूने के।

कर्मठ मरुस्थली पर ही,

चाहत के देखो फूल  खिलते।

मन में लगन तुम्हारे पक्की,

मरुस्थल में भी फूल खिला दे।

चट्टानों का सीना चीर

सुगम रास्ते आप बना दे।

            रचनाकार ✍️

            मधु अरोरा