पवन पुत्र हनुमान और पृथ्वी लोक

कलयुग में सबसे ज्यादा जागृत और साक्षात लोगों को दुख दर्द और संकट से बचाने वाले और कोई नहीं हनुमान ही है जो सशरीर पृथ्वी लोक में निवास करते हैं तथा कोई भी मायावी शक्ति उनके सामने ठहर नहीं पाती l 

. आज से 900000 वर्ष पहले कपि नामक वानर (वन में निवास करने वाले) जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी परंतु 15000 वर्ष पूर्व लुप्त  हो गई l वाल्मीकि जी ने श्री हनुमान को विशिष्ट पंडित राजनीति में धुरंधर और वीर शिरोमणि कहा है इनके पिता का नाम श्री केसरी तथा माता का नाम अंजना है इसलिए इन्हें आन्जनेय एवं केसरी नंदन कहा जाता है हनुमान जी भगवान श्री राम के जन्म से पहले चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन जन्मे थे इन्हें कई देवी-देवताओं से शक्तियां प्राप्त होती है तथा माता सीता द्वारा अष्ट सिद्धियां दी गई इंद्र और सूर्य देव के द्वारा कई शक्तियों का वरदान एवं ब्रह्म देव द्वारा तीन वरदान दिए गए थे जिनमें एक वरदान ब्रह्मास्त्र का उनके ऊपर असर ना होना भी है उनके पास कई चमत्कारिक शक्तियां भी हैं जिनके द्वारा भी मच्छर से भी छोटा तथा हिमालय से भी बड़ा रूप धारण कर सकते हैं हनुमान रूद्र अवतार अर्थात शिव अवतार भी है। 

हनुमान शब्द का हा ब्रह्म का नु अर्चना का मा लक्ष्मी का और न पराक्रम का द्योतक है l 

हनुमान कलयुग में धरती पर जब तक राम कथा का गुणगान होगा तब तक सशरीर धरती पर ही विचरण करेंगे l धर्म की रक्षा के लिए उन्हें अमरता का वरदान भी मिला भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतरित होंगे तब हनुमान परशुराम कृपाचार्य विभीषण बाली जैसे लोग ही पृथ्वी पर सुरक्षित रहेंगे l लंका विजय के पश्चात अयोध्या लौटने पर प्रभु राम ने जब सभी को कृतज्ञता स्वरूप उपहार दिया तब हनुमानजी ने याचना की थी कि 

यावत  राम कथा वीर चरिषयति महीतले l 

ताव्च्छरीते वत्स्यन्तु प्राणl मम न संशय : ll 

धर्म की रक्षा का तथा स्थापना का कार्य चार लोगों के हाथों में है माता दुर्गा श्री भैरव हनुमान और श्री कृष्ण 

द्वापर युग में हनुमान जी भीम की परीक्षा लेते हैं यह प्रमाण है कि वह धरती पर है इसी प्रकार भगवान कृष्ण सत्यभामा, सुदर्शन चक्र एवं गरुण की शक्ति के अभिमान का मान मर्दन हनुमान जी की मदद से करते हैं 

कहा गया है  कि कलयुग में श्री राम का नाम लेने वाले तथा हनुमान की भक्ति करने वाले ही सुरक्षित रह सकते हैं तथा जो पूर्ण श्रद्धा और विश्वास उसे हनुमान जी का आश्रय ग्रहण करते हैं 

तो तुलसीदास की भांति उन्हें भी हनुमान और राम दर्शन प्राप्त होंगे  l 

प्रभु कलयुग में अपने भक्तों को अपने होने का आभास कराते हैं 

जैसे तुलसीदास को हनुमान ने इन वचनों  से आभास कराया

 चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर 

तुलसीदास चंदन घिसै तिलक देत रघुवीर ll 

 श्री हनुमान जी ने कलयुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं श्रीमद्भागवत में ऐसा वर्णित है यह सुगंधित वनों वाला पर्वत है पुराणों के अनुसार जम्मू दीप के इलाव्रतखंड और श्रद्राश्र्व खंड के बीच गंधमादन पर्वत है l 

हनुमान जी के गुरु सूर्य भगवान हैं और सूर्य भगवान से हनुमान जी ने विद्या प्राप्त की हनुमान जी को सभी विद्याये सूर्य भगवान से प्राप्त करनी थी जो कि 9 थीं इनमें से पांच विद्या तो वह प्राप्त कर चुके थे परंतु आगे की 4 विद्याओं को ग्रहण करने के लिए उनका विवाहित होना आवश्यक था वह विद्या से विवाहित पुरुष ही प्राप्त कर सकते थे अतः विद्या प्राप्ति हेतु सूर्य भगवान की आज्ञा से सूर्य भगवान की पुत्री सुवर्चला से विवाह का प्रस्ताव आया और हनुमान जी ने  सुवर्चला जी से विवाह किया l विवाह उपरांत तपस्विनी सुवर्चला सदा के लिए तपस्या में लीन हो  गई और हनुमान जी उसी प्रकार ब्रह्मचारी रहे l 

पराशर संहिता में परिस्थिति वश विवाह बंधन में बंधने का कारण बताया गया है तथा तीन विवाह भी बताए गए हैं तेलंगाना के खम्मम मंदिर में हनुमान जी का उनकी पत्नी के साथ मंदिर में प्रतिमा का होना इस बात का प्रमाण है कहा जाता है इस मंदिर में दोनो के दर्शन प्राप्त करने वाले का दांपत्य जीवन सुखमय होता है l

 इंद्र आदि देवताओं के बाद धरती में सर्वप्रथम विभीषण जी ने हनुमान जी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी इस स्तुति में एक अद्भुत और अचूक स्त्रोत की रचना की जिसका नाम बड़वानल स्त्रोत है आध्यात्मिक संगठन सेतु के अनुसार हनुमान जी आदिवासी समूह मातंग से मिलने अभी भी आते हैं और यह कबीला रामायण काल से उन से जुड़ा हुआ है सर्वप्रथम हनुमान जी ने अयोध्या से वापसी के पश्चात हिमालय पर्वत पर अपने नाखूनों उकेर कर रामायण लिखी जिसे हनुमन्नाटक कहते हैं l परंतु जब बाल्मीकि अपनी रामायण शिवजी को दिखाने पहुंचे तो उनकी रामायण को देखकर दुखी हो गए उनकी इस परिस्थिति को भांपकर हनुमान जी ने अपनी रामायण मिटा दी और समुद्र में फेंक दी  l 

लंका दहन के समय गर्मी के कारण हनुमान जी का पसीना समुद्र में गिरा जो मछली के मुंह में गया जिससे मकरध्वज का जन्म हुआ जो हनुमान जी के पुत्र कहे जाते हैं और वह भी हनुमान जी के समान वीर प्रतापी पराक्रमी और महा बली थे  l अहिरावण जब राम और लक्ष्मण को पाताल लोक में ले जाता है l तब पाताल लोक में मकरध्वज की हनुमान जी की मुलाकात होती है l 

हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है प्रभु राम का स्नेह प्राप्त करने हेतु उन्होंने पूरे शरीर में सिंदूर का लेपन किया थाl इसलिए कहते हैं कि सिंदूर भगवान को अति प्रिय है कहा जाता है बाल्मीकि कलयुग में तुलसीदास के रूप में अवतरित हुए और उन्होंने हनुमान चालीसा लिखकर प्रभु की स्तुति की तथा रामचरितमानस भी लिखा l जिसमें उन्होंने हनुमान जी की रामायण हनुमन्नाटक का भी उल्लेख किया है l

 अत:हनुमान जी की कृपा बनी रहे इसके लिये आवश्यक है कि व्यक्ति मन वचन कर्म से पवित्र रहे तथा कभी झूठ न बोले l 

पवन तय संकट हरण मंगल मूर्ति रुप  l 

राम लखन सीता सहित हृदय 

बसहु सुर भूप ll 

वंदना यादव 

चित्रकूट उत्तर प्रदेश