ग़ज़ल

जलते ही रहे रात जाने से पहले, 

सितारों का रस्ता दिखाने से पहले।


मालूम था नहीं तीरगी का ये आलम, 

गिरे हम तो लोगों टकराने से पहले।


चोटें जो लगी हमको रो हि पड़े मगर, 

खुद ही रो दिए वो रुलाने से पहले।


समझे थे नहीं हम ख़ता आज हमारी, 

मुंह मोड़ कर चले वो निभाने से पहले।


समझे जो कोई बेबसी का ये आलम, 

करें खुद फैसला कुछ बताने से पहले।


थकते ही रहे हम ज़माना क्या जाने, 

झुका देते हैं सिर को उठाने से पहले। 


सोचा था कि वो मान जाएंगे पर, 

तोड़ हि दिए ये दिल लगाने से पहले। 


अनामिका मिश्रा

झारखंड, जमशेदपुर