कान्हा अपने पास बुला ले।

हा मैं प्रेम करती हूँ।

बेइंतहा प्रेम करती हूँ।

हा मैं मेरे कान्हा से

बेहिसाब प्रेम करती हूँ।

बंद-खुली आँखों से

बस उसका ही दीदार

मैं करती हूँ।

हा मैं मेरे कान्हा से

बेशुमार प्रेम करती हूँ।

भले ही मैं मीरा की तरह

नाचती गाती नही हूँ।

दुनिया से बेगानी

होती नही हूँ।

निभाते हुए दुनिया 

के सारे कर्तव्यों को

मैं मेरे कान्हा को ही

चारों तरफ देखती हूँ।

हा मैं कान्हा से

प्रेम करती हूँ।

वो प्रभु है मेरे

मैं उनकी हूँ दासी

उनके बनाये तालाब में

मैं ही प्यासी रहती।

अब हूक उठी है सीने में

साँवरिया तुझसे मिलने की

ये जग बेगाना लगता हैं।

मैं हूँ ही नहीं इस जग की

एक नजर डाल मुझ पर

मुझको अपना बना ले।

तुड़वा दे मेरे सारे बन्धनों को

बस अपने पास बुला ले।

कान्हा तेरे चरणों की रज बना

मुझे बस अपने पास बुला ले।

जी नही लगता तेरी दुनिया में

मोहे अपने पास बुला ले।

कान्हा अपने पास बुला ले।


गरिमा राकेश 'गर्विता'

कोटा राजस्थान