नौ दो ग्यारह

गांव में बहुत चहल पहल थी । चुनावों का जोर चल रहा था ‌। नेता राम खिलाड़ी को पार्टी ने विधायक का टिकट दिया । राम खिलाड़ी एक नं . का धूर्त नेता था मीठी मीठी बातों में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता था । आज उसका गांव में प्रचार था । उसके गुर्गे गांव में एनाउंस कर रहे थे । सब लोग राम लीला मैदान में एकत्रित हो जायें । गांव में ही रहने वाले अध्यापक सुनील जी बहुत सज्जन व्यक्ति थे । उनको राम खिलाड़ी की हकीकत का पता था । सुनील जी की सब गांव वाले बहुत इज्जत करते थे ‌। सुनील जी ने गांव की सब लड़कियों से उस सभा में जाने से मना कर दिया था । वह जब चाहता अपने गुर्गों से जो लड़की उसे पसंद आ जाती उठवा लेता और अधिक बवंडर ना मचे उस लड़की के मां बाप को डरा धमका कर कुछ पैसे देकर उनका मुंह बन्द कर देता था । उसी गांव में चमेली नाम की एक लड़की रहती थी । वह अपुर्व  सुन्दरी व बहादुर थी ।डरना तो उसने सीखा ही नहीं था । जब सभा शुरू हुई चमेली पता ना कहा से आगयी । चमेली को देख कर राम खिलाड़ी उस पर आसक्त होगया उसने अपने नौकरों से उसे लाने का इशारा कर दिया । जैसे ही नौकरों ने उसे पकड़ने की कोशिश की उसने अपना चाकू सलवार की जेब में से निकाल कर हवा में लहराया और बोली हिम्मत है तो हाथ लगाओ काट कर रख दूंगी । मै पानी की मछली नहीं हूँ जो जाल में फंसा लोगे । बस उसकी घुड़की से नेता जी और उनके चमचे सर पर पैर रख कर भागे । नेता जी को महसूस हुआ कि यहाँ भाग लो यहाँ दाल नहीं गलेगी ।सब नौ दो ग्यारह होगये ।

स्व रचित

डॉ.मधु आंधीवाल

अलीगढ़