माता

ये आंखों ने इशारे करना छोड़ दिया।

मां तुम्हारी भक्ति से अपने को जोड़ लिया।

दोस्ती कर ली मां तुम्हारे चेहरे से

दोस्तो में अब वक्त बर्बाद नहीं करती।

चाय की आदि थी पीज़ा मेरी जान थी

लत लगी मंदिर की

घर में चैन न पाई थी

छोड़ सारी गली

मां तेरी की शरण पाई थी।

आंखे जब खुली मेरी

मां तुम्हारे द्वार आई थी।


प्रतिभा जैन

टीकमगढ़ मध्य प्रदेश