चारों तरफ रुग्नता का साया है माँ।
कल्पद्रुम भी देखो मुरझा रहे,
पाप और अन्याय से कुम्हला रहे।
हे षट्चक्रभेदिनी माँ तमस दूर कर दो,
हे शक्ति स्वरूपा माँ प्रचंड रूप धर लो...
नारी अस्मिता पर बन आयी है माँ,
बेटियां क्यों आज भी परायी हैं माँ?
इक ओर कन्यापूजा का स्वांग हैं करते,
दूजे बेटियों पर बुरी नज़र हैं रखते।
हे शत गज बलशाली माँ दुष्टदलन कर दो ,
हे शक्ति स्वरूपा माँ प्रचंड रूप धर लो...
तेरी आज बहुत जरूरत है माँ,
ममता दिखाई दिखा रणचंडी की मूरत माँ।
शोणित बीजहरणी माता चण्ड मुंड संहार करो,
हे बुद्धिदा हे सिद्धिदा जड़ता का नाश करो।
हे मातृ,शक्ति दातृ,नारी शक्ति का आह्वान कर दो,
हे शक्ति स्वरूपा माँ प्रचंड रूप धर लो...
रीमा सिन्हा (लखनऊ)