आत्मज्ञान

शुरू कर रहा हूं जीवन का पहला अध्याय,

सुख और दुःख का पाठ अब मुझे पढ़ना है।

बार-बार करूंगा अभ्यास एक ही विषय को,

कर्म और ध्यान से लक्ष्य पथ में आगे बढ़ना है।।


सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त प्रातः जागरण,

घोर तिमिर में ज्ञान प्रकाश करेगा उजाला।

बनकर स्वाध्याय विद्यार्थी जप-तप करूंगा,

ऋषि-मुनियों के सदृश्य गिनूंगा विद्या माला।।


दुर्बलता और आलस्य ने पहनाया हथकड़ी,

अज्ञान रूपी राक्षस के बंदीगृह में मैं कैद हूं।

किसी दिन तोड़कर सलाखें भाग जाऊंगा मैं,

अपनी कमजोरी और बीमारी का स्वयं वैद्य हूं।।


मन से हार गया तो कभी जंग जीत ना पाऊंगा,

मुझे अपनी अंतरात्मा को बार-बार जगाना है।

तू जो कर सकता है उसे कोई नहीं कर सकता,

मुर्दों सा जीवन को फिर से जीवित बनाना है।।


अंतिम बार प्रयास करूंगा युद्ध जीतने के लिए,

दुर्गम राहों को सुगम मार्ग बनाकर आगे बढूंगा।

सहस्त्रों चुनौतियों का सामना करना आ गया है,

सफलता मंजिल के सीढ़ियों में धीरे-धीरे चढूंगा।।


कवि- अशोक कुमार यादव 

पता- मुंगेली, छत्तीसगढ़ (भारत)