बचा रहे..

चाहती हूं 

बचें रहें अब भी कुछ शब्द अनकहे

कि कह सकूं

रोज़.. कुछ नया सा !!


चाहती हूं

बचीं रहें व्याख्याएं अभी कई

कि समझ सकें

मन..ये उलझा हुआ सा !!


चाहती हूं

बचीं रहें अब भी कुछ कविताएं

कि समेंट सकूं

कुछ नये अर्थ !!


चाहती हूं

बचें रहें मन में कुछ दर्द

कि लिखती रहूं

कविता ऐसे ही !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश