आज घर से निकल बाहर काम पर जाती
काम करती अलग-अलग क्षेत्रों में स्त्रियां
तभी दो कमाई कमा घर में ही आती।।
नौकरी हे किसी की सरकारी तो कोई
स्त्री प्राइवेट काम में खुद को खपाती।।
घर आकर भी सुकून कहां मिलता उसे
घर के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाती।।
सास-ससुर , नन्द , देवर पति बच्चों को
पकाकर खाना भी भर पेट खिलाती।।
नौकरी है आखिर नौकरी स्त्री की
कभी-कभी घर आने पर देर हो जाती।।
हजारों सवाल आंखों में परिवार के
हर सवाल का जवाब देकर मुस्काती।।
कहीं-कहीं तो परिवार समझ पाते स्त्री को
पर कहीं स्त्री चरित्रहीन इल्जाम है पाती।।
देर से आए कभी भी मर्द अगर घर तो
परिवार में उसकी कमाई उसके पाप ढ़क जाती।।
क्यों आखिर आज भी स्त्री प्रताड़ित
तंहा सब सह आंसूं बहाती।।
स्त्री भी तो मेहनत कर घर ही चलाती
अपना वज़ूद , सर्वोसर लुटा भी स्त्री
देर से आने पर बस इल्ज़ाम ही पाती।।2।।
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र