पापा...पापा..मेरे स्कूल कब खुलेंगे?

फोर्थ में पढ़ रही नन्ही प्रियांशी ने पापा की आँखों में झाँकते हुए कहा। 

बेटा,सुना है कोरोना की तीसरी लहर बच्चों के लिए बहुत घातक होने वाली है,इसलिए विद्यालयों को अभी कुछ दिन और नहीं खोला जा सकता।दिलीप ने नन्ही प्रियांशी को समझाते हुए कहा।

पापा , सब कुछ तो खुला है फिर विद्यालय क्यों नहीं? प्रियांशी ने सवाल दागा।

बेटा, विद्यालय में भीड़-भाड़ होने पर संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा।दिलीप ने। सीधे शब्दों में उत्तर देना ही उचित समझा।

पर पापा! क्या हम जरुरत पढ़ने पर भीड़- भाड़ वाली बाजारों में नहीं जाते ?क्या हम जानलेवा खचाखच भरी बसों से यात्रा नहीं करते है? या फिर।क्या हम अन्य जरुरी कार्यों के लिए भीड़- भाड़ वाली जगहों पर नहीं जाते है।नन्ही प्रियांशी ने बड़ी मासूमियत से प्रश्न करते हुए निगाहेँ दिलीप के चेहरे पर जमा दी।

नहीं बेटा। वो बात नहीं है।हम सब बच्चों के भविष्य और उनकी जान को लेकर फ़िक्र मंद है,तभी तो हमारे कर्ता-धर्ता फूंक -फूँक कर कदम धर रहे है,वैसे भी वैज्ञानिक न कहते कि कोरोना की तीसरी लहर बच्चों के लिए बहुत घातक और विनाशकारी है।तो शायद विद्यालय खोल दिए जाते।दिलीप ने प्रियांशी के सिर को सहलाते हुए चिन्तित स्वर में कहा।

पापा, जिस हिसाब से यह सब चल रहा है उस बेस पर, क्या आपने सोचा है कि लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व मैं फोर्थ क्लास में थी?अगर मान लीजिए दो सत्रों के बाद विद्यालय खुला।तो मैं बिना पढ़े - लिखे ही दो कक्षा ऊपर प्रमोट होकर सीधे सिक्स में पहुँच जाऊंगी।तब दो क्लास पढ़े बिना मैं कितनी समझदार और ज्ञानशील बन पाऊँगी ये तो रब ही जानता है ।और अगर मान लीजिए ,मैं शिक्षा और अधिगम को महत्व देकर ऊपरी कक्षा में प्रमोशन न लूँ,तो आगे चलकर नौकरी के लिए ओवर एज होने पर भविष्य चौपट होना तो तय ही है।ऐसे में कुल मिलाकर देखा जाए तो हर तरह से सबसे ज्यादा खिलवाड़ हम बच्चों के भविष्य के साथ ही हुआ है।पापा अब आप ही बताए? जिसने बच्चों के साथ ही साथ पूरे राष्ट्र का भविष्य अंधकारमय कर दिया हो।क्या कोई लहर या विपदा इससे भी अधिक घातक हो सकती है।

कहकर मासूम प्रियांशी ने दिलीप की आँखों में देखते हुए प्रश्न किया।

सिर झुकाते हुए- हाँ.. बेटा ।शायद तू सच कह रही है। कहने के सिवा दिलीप के पास कोई जवाब नहीं था।

 अमर'अरमान'

बघौली, हरदोई

उत्तर प्रदेश