मन तेरा संसार है, मन तेरा है ईश।

मन तेरा संसार है, मन तेरा है ईश।

क्यों झुकता है फिर भला,बुत के आगे शीश।।  (१)

मन ही तेरा कर्म है,मन ही है प्रारब्ध।

अवसर चूके तू भला,क्यों बरसाए अब्द।।(२)

मन ये चंचल पात है,मन है शीतल नीर।

मन ही उपजे वेदना, मन ही हरता पीर।।(३)

मन काबू में जो रखे,मिले बहुत जग मान।

मन चपल 'अरमान' कहे,देत सदा अपमान।।(४)

मन के हारे हार है,मन के जीते जीत।

मन ही सुर-लय- ताल है,मन ही सच्चा गीत।(५)

मन सागर सा धीर है, मन पीपल का पात।

मन पूनम सा पाक है,मन मावस की रात।।(६)

मन मानव श्रृंगार है, मन ही है भरतार।

मन ही देता हौसला,मन ही देता मार।। (७)

जो मन के परबस रहा,किया न कुछ भी काज।

सदा ही वो परबस रहा,किया कभी न राज।।(८)

मन उपजे मृदु कामना, मन ही उपजे छंद।

मन ही डाले बेड़ियाँ,मन ही खोले बंध।।(८)

मन ही से रिश्ता बने,मन ही से संबंध।।

अपना पन मन में बढ़े,मन ही बढ़े द्वन्द्व।।(९)

अर्थ पराया देख कर,मन में बढ़ता लोभ।

तिल -तिल कर जलता रहे,बढ़ता जाता क्षोभ।।(१०)

अमर'अरमान'

बघौली,हरदोई

उत्तर प्रदेश

7651997046