अब तो रहम करो हे मेघा

अब तो रहम करो हे मेघा,

आई के बरसो झमझम खेत।

सूखी गये सब ताल तलैया,

सूखी गये हैं सारे खेत।

प्यासे हैं सब जीव चिरैया,

जला रही है सूखी रेत।

बिन बरखा बिन पानी के,

सभी हो रहे यहाँ अचेत।

अब तो रहम करो हे मेघा,

आई के बरसो झमझ्म खेत।

सूखी रहा सब धरती- अम्बर

सूख रहे हैं तीनोंं लोक।

पड़ी दरारें अवनि तल में,

बिन पानी प्यासे हैं  जोंक।

बिन पानी हरियाली बिन

दादुर मना रहे है शोक।

अब तो रहम करो हे मेघा,

आई के बरसो झमझम खेत।

देख-देख कर काले बादल

लगे याचना करने मोर।

बुझ जाए सब प्यास धरा की

बरस लगा कर इतना जोर। 

पूरे हो 'अरमान' जगत के

हो उत्कर्ष का स्वर्णिम भोर।

अब तो रहम करो हे मेघा

आई के बरसो झम झम खेत।


अमर'अरमान'

बघौली, हरदोई

उत्तर प्रदेश

मो. 7651997046