सदाचरण के छंद

नहीं दुराव,हो उठाव,आज तो पले विवेक।

सही बहाव,हो उड़ान,रीति,नीति प्यार नेक।।

सुशील हो,न कील हो,बढ़ोतरी करो विनीत।

जहान धर्म-कर्म मान,मीत गीत हो पुनीत।।


महान ज्ञान वान संत,जो कहें वरो सुजान।

ग़रीब तो सभी यहाँ सभी,रहो सुधर्म मान।।

सुदीप जो जले,उजास का रहे यहाँ प्रभाव।

परोपकार मान लो, नहीं रहे ज़रा अभाव।। 


सदा दिली लगाव,तो रहे सदा भला प्रभाव।

करो-करो सदा दया,वरो,रखो,हवा बहाव।।

जहाँ भरा अधर्म हो,तजो सदा गिरा कुकर्म।

अनंत गान मान हो,करो सदा खरा सुकर्म।।


नहीं करो कभी अधर्म,बात ये सुने जहान।

रहो सदा प्रिये उदार,तो मिले नया विहान।।

करो सदा खरा-खरा,यही रहे सदा सुगान।

दया करो,दुआ मिले,यही कहें सभी सुजान।।


प्रसार आज धर्म ,प्रीति,गान ही बने विचार।

बहाव मानवीय गीत,आज तो पले प्रचार।।

फसाद से रहो जुदा,जगो अभी बनो अशोक।

बुरे नहीं,बनो भले,सदा रहे अनीति रोक।।


बढ़े चलो,नहीं कभी अनर्थ ले तुझे दबोच।

तु पैर को बढ़ा,सदा मिले नहीं अधर्म-मोच।।

जुबान भी रहे विनीत,रूह में सदा सुवास।

करो सदा असत्य नाश,जीवनी भरे प्रभास।।

 

                 --प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे