ज्ञानज्योति

आज कुछ दिनों के बाद जल्दी से रोजमर्रा के काम समाप्त कर के ज्योति अपने मनपसंद प्लेटफार्म फेसबुक पर थी, पति परमेश्वर ज्ञान टीवी पर मैच देखने मे मशगूल थे, वैसे भी उन्हें ये सोशल साइट्स पसंद नही थे उनकी असली साथी किताबे ही थी । अचानक ध्यान गया किसी का फ्रेंड रिक्वेस्ट है, झट से प्रोफाइल खोली, कोई दीपक था, कुछ कुछ पहचाना सा लगा। फिर तो अतीत की धुंधली यादों में विचरण करने लगी ।

पुरानी पहचान है सोचकर, फेसबुक दोस्त बन गए। 

दूसरे दिन मेसेज आया ,"सुनोगी नही मैं क्यो तुम्हे छोड़ कर चला गया था, उस दिन कॉलेज से रूम में आया तो घर से टेलीग्राम आया था, जल्दी घर आओ, जाने पर पता चला, बाबूजी नही रहे फिर तो एकाएक मैं कई जिम्मेदारियों में फस गया । दो छोटी बहने और माँ को मेरी जरूरत थी, अपने आप को भूलकर सबकी सेवा में लग गया । यहीं आगे की पढ़ाई की और शिक्षक बन गया कई बार माँ ने विवाह की बात की, मैंने नकार दिया ।

समय अपनी गति से बढ़ चला, मैं अकेला रह गया, कुछ दिन पहले ही फेसबुक में सर्च करने पर तुम मेरे सामने थी, अब फिर से तीस वर्ष बाद, कॉलेज के साथ बिताए दो वर्ष और हमारे प्यार की बाते दिल मे गूंजने लगी।"

आज फिर एक मैसेज आया मैं तुमसे मिलने वाराणसी तुम्हारे शहर आया हूँ, वही कॉफ़ी हाउस में कल शाम तुम्हारा इंतेज़ार करूंगा । आओगी न ये पढ़कर ज्योति का मन दुखी हो गया, ये कैसा शख्स है इसे पता है कि तीस वर्ष पहले ज्ञान से शादी हो चुकी है। और उसकी उंगलियां कीबोर्ड पर अपना कमाल दिखाने लगी।

"तुम जानते हो तुम्हारे साथ तो 2 वर्ष के कुछ घंटे मैंने बिताए थे और इस ज्योति ने अपने ज्ञान के साथ तीस वर्ष के हर पल घंटे प्यार में बिताए है, शादी के बाद मैंने कभी पीछे मुड़ के देखना नही चाहा , ईश्वर ने एक देवता से मेरा साक्षात्कार कराया था । हमारा दोनों का प्यार और विश्वास सौ प्रतिशत एक दूसरे के ही लिए है इसमें किसी तीसरे की कहीं कोई गुंजाइश नही है । मैं कभी भी इनके साथ कोई छल कर ही नही सकती। अब सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर हम अपने जीवन का स्वर्णिम वक़्त सिर्फ एक दूसरे के लिए ही सुरक्षित रखते हैं । मेरे ख्याल से तुम मेरे शब्दों का अर्थ समझ चुके होंगे, अभी भी वक़्त है, कोई जीवनसंगिनी बनने को इच्छुक हो तो बना लो, जीवन में पति पत्नी के साथ से बढ़कर कुछ नही है ।"

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर