नाजो मे पली थी,
फूलों की डली थी।
बैठ डोली मे,
पिया घर चली थी।
आँखे मां की,
झर झर सी बह रही।
निगाहें पिता की,
बिन कहे कुछ कह रही।
आंगन की महक,
वो कच्ची सी कली थी।
बैठ डोली मे,
पिया घर चली थी।।
भाई का हृदय भी,
चूर हो रहा था।
अपनी लाड़ली से वो,
दूर हो रहा था।।
व्याकुल से हृदय मे,
मची खलबली थी।
बैठ डोली मे,
पिया घर चली थी।।
रस्में सारी,
अदा हो रही थी।
बाबुल की बिटिया,
विदा हो रही थी।।
वीरान लगे रास्ते,
सूनी सी हर गली थी।
बैठ डोली मे
पिया घर चली थी।।
चारू मित्तल
मथुरा(उ०प्र०)