प्राचीन सिद्ध पीठ श्रीमोटेमहादेव मंदिर पर भक्तो की पूरी होती है मुरादे

असोथर/फतेहपुर। कस्बे में स्थित प्राचीन सिद्ध पीठ श्रीमोटेमहादेव मंदिर में श्रद्धा भक्ति से मांगी गयीं मुरादे होती है पूरी वही श्रद्धालुओं की सुबह शाम लगती है भीड़ आस्थाओ से जुड़ा है यह मंदिर।। पाताललोकिय प्राचीन सिद्धपीठ श्री मोटेमहादेव बाबा मंदिर इतिहास बताते चले कि उत्तर प्रदेश राज्य के फतेहपुर जिले के असोथर कस्बे में  प्रचलित मोटेमहादेवन मूर्ति में आज भी अश्वस्थामा  आज भी पूजा करने आते है यह प्रमाण आज भी  मंदिर के पूजी हुई मूर्ति से मिलती है। मंदिर का उड्गम कब हुवा यह स्पस्थ नही है। लेकिन मान्यता यह है की आदिकाल से अदभुत शिवलिंग अश्वस्थमपुरी (असोथर) में इस्थापित है,बताते है की जयपुर के राजा शिव मंदिर का महत्तम सुनने के बाद ऊँटो से धन भेजकर मंदिर का निर्माण करवाया था,मान्यता है की सच्चे मन से जो भी मंदिर में मन्नत मांगता है उसकी मनोकामना खुद भोले बाबा पूरी करते है। सावन माह और शिवरात्री में शिवभक्तो की भीड़ जुटती है.जहा लोग पूजा अर्चना से जलाभिषेक करते है शिवभक्तो का मानना है की शिवलिंग ईशान कोण की ओर झुकी है,जो बाबा विश्वनाथ (काशी) के ओर झुकी है और हमेशा पूजी हुई मिलती है।. ऐसा मानते है की अश्वस्थामा सफेद घोड़े में सवार होकर पूजा के लिए मोटेमहादेवन मंदिर आते है  असोथर कस्बा वर्तमान में इस्थापित  अश्वथामा मंदिर के पास हैयह पुराना सच है की मोटेमहादेवन मंदिर के पास तालाब था गाँव के कुछ चरवाहे मवेशी चरा रहे थे,उन्होंने झाड़ियो में शिवलिंग को देखा था। जानकारी होने पर गाँव के कुछ लोग शिवलिंग को खोदाने की कोशिश की लेकिन शिवलिंग का निचला हिस्सा नही मिला।सफलता न मिलने पर लोगो ने शिवलिंग की पूजा करना शुरू कर दी। बताते है की एक बार राजा जयपुर बीमार हो गये थे कई स्टेट के वैद्य इलाज के लिए गये थे। अशोथर स्टेट से  वैद्य जोरावर महाराज गये थे। जयपुर जाने से पहले वैद्य मोटेमहादेवन मंदिर जाकर पूजा अर्चना की थी बताते है सारे वैद्य राजा जयपुर का इलाज करने  में असफल हो गये थे लेकिन जोरावर महाराज का इलाज करते ही स्वस्थ हो गये। तब लोगो को आश्चर्य हुवा। उन्होंने इलाज के बारे में वैद्य महाराज से जानकारी ली। तब उन्होंने मोटेमहादेवन मंदिर का महत्त्व राजा के दरबार में बताया था। राजा जयपुर ने वैद्य के साथ ऊँटो में धन भेजकर मंदिर का निर्माण करवाया था। कुछ पूर्वजो का कहना है की जो मूर्ति असोथर में है उस तरह की मूर्ति पुरे उत्तर प्रदेश राज्य में भी नही है। और ये भी  कहना है कि पूर्व में असोथर कस्बा वर्तमान में स्थापित अश्वत्थामा मंदिर के पास है तब मोटे महादेव मंदिर के पास तालाब था बताया जाता है कि कुछ चरवाहे वहां जानवर चरा रहे थे तभी शिवलिंग दिखाई पड़ी काफी प्रयास के बाद शिवलिंग को खोदकर बाहर निकालने की कोशिश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली। मंदिर में जो भी सच्चे मन से कुछ भी मांगता है उसे भोले बाबा  उसकी मनोकामना पूरी करते है।