ऑनलाइन क्लास का औचित्य
कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण ऑनलाइन कक्षाएं संचालित हो रही हैं और इसके विरोध और समर्थन में भी एक बहस लेखकों, विचारकों, शिक्षाविदों के बीच लगातार जारी है। दोनों ही पक्ष कुछ हद तक सहीं हैं पर कुछ सीमा तक दोनों ही पक्षों को पुनर्विचार की आवश्यकता है।

 

1. ऑनलाइन शिक्षण या ऑनलाइन कक्षा, कभी भी सजीव या सामान्य कक्षा का न विकल्प बन सकती है और न बराबरी कर सकती है। शिक्षा एक कला भी है और विज्ञान भी। बीएड की ट्रेनिंग में एक विषय मनोविज्ञान का इसलिए ही रखा गया है ताकि मनोविज्ञान की समझ को उपयोग करते हुए, बाल्यावस्था/किशोरावस्था की विशेषताओं से लेकर अभिवृद्धि, विकास आदि के पहलुओं को शिक्षण के दौरान अवचेतन में रखते हुए, समायोजन से लेकर व्यक्तित्व की परिभाषाओं को आधार की तरह मानते हुए ही कक्षा ली जाए। कक्षा में इंटरेक्शन हो। शिक्षण में आत्मीयता हो। अति सक्रिय या समस्यात्मक बालक से लेकर प्रतिभाशाली बालक तक विभिन्न आईक्यू और विभिन्न स्वभाव वाले बालकों की अधिगम जरूरतों को विभिन्न प्रयोगों, उपायों आदि से स्तर अनुरूप पूरा किया जा सके। 

 

2. उपर्युक्त तथ्य या वाद निर्विवाद है लेकिन इसका क्रियान्वयन सम्पूर्ण सत्य नहीं है। थोड़ी देर के लिए मन की परतों में भीतर जाकर कुछ फिल्मों के सीन या कहानियों को याद कीजिये। जैसे थ्री इडियट, तारे जमीन पर। उन फिल्मों में जो था वो ही कड़वा सच है। शिक्षा व्यवस्था या शिक्षण आदर्श रूप में किताबी नियमों से ओतप्रोत है पर व्यवहार में? आज अंतिम ध्येय है नब्बे प्रतिशत लाना। अच्छा परीक्षा परिणाम लाना, ये क्रिया युद्ध की तरह चलती है। कौनसा टीचर कक्षा में बच्चों को मूल्यों, नैतिकता, जीवन दर्शन, व्यवहार कला और मानवीय चिंतन के प्रति ज्ञान देता दिखता है? बीएड में ही टीचिंग मेथोडोलजी भी पढ़ाई जाती है लेकिन नम्बर लाने की होड़ का जो हल्ला बोल है, उसमें सब मनोविज्ञान या शिक्षण पद्धति निरस्त कर छात्र और अध्यापक मशीन से बने दिखते और पढ़ते पढ़ाते लगते हैं। ऑनलाइन कक्षाओं में जो एक तरफा सम्बोधन और एक तरफा श्रवण है वो ही सामान्य कक्षाओं में अधिकतम रूप में है।

 

3. जैसे ही कोरोना संकट खत्म या कम होगा और स्कूल शुरू होंगे, कक्षाएं सामान्य रूप से होने लगेंगी। ऑनलाइन कक्षाओं के विरोधी ये मान कर विरोध कर रहें हैं मानों अब ताजिंदगी ऐसा ही चलेगा। जब तक स्कूल नहीं खुल रहे, तब तक के लिए ये एक अस्थायी व्यवस्था है और जरूरी भी है। समय निरन्तर निकल रहा है और पल पल बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। ऑनलाइन कक्षाओं से बच्चे कुछ भी या थोड़ा भी सीख सकें, ज्ञान प्राप्त कर पाए तो सार्थक होगा।

 

4. ऑनलाइन कक्षाएं, ये भविष्य की झलक है। दो रूपों में या दो कारणों से। मानव को हमेशा आने वाले संकट के लिए तैयार रहना चाहिए। चाहे आपदा प्राकृतिक हो या कृत्रिम। भूकम्प से लेकर युद्ध तक उदाहरण लें कि जब जीवन अस्त व्यस्त होता है उसमें एक बड़ा नुकसान पढ़ाई का भी है। ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से हमेशा ही अधिगम प्रक्रिया की भरपाई की जा सकती है। आने वाले भविष्य की दूसरी कल्पना ये है कि आज से दस, बीस या पचास साल बाद के बारे में सोचें। जब बच्चे भारी बैग की जगह हाथ मे एक 10 इंच का टेबलेट लेकर स्कूल जाया करेंगे। आने वाला समय तकनीक और डिजिटलाजेशन को पूरी तरह लागू कर देगा। जो देश या जो समाज या जो व्यक्ति इसको अपना नहीं पायेगा वो पिछड़ जाएगा। परिवर्तन एकाएक नहीं होगा इसलिए ऑनलाइन कक्षाएं आगामी शिक्षण व्यवस्था की एक हल्की सी कल्पना है। 

 

5.  कई स्कूलों विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के लिये आज के समय में ऑनलाइन कक्षा की व्यवस्था एक नई शुरू हुई चीज है। इंटरनेट की कम स्पीड जैसे मुद्दे यथार्थ है। एक उदाहरण लें कि किसी समय तार वाला फोन होता था, फिर बटन वाला मोबाइल आया और आज हर हाथ में स्मार्टफ़ोन है। ऑनलाइन कक्षाओं के विरोधियों को ये समझना पड़ेगा कि ऑनलाइन कक्षाओं में जो समस्याएं हैं, जो कमियां हैं, जैसे इंटरेक्शन की कमी आदि वो तकनीक में सुधार करते करते आगे आने वाले समय में अच्छी और अच्छी होती रहेंगी और बदलती रहेंगी। जैसे कि नए एप्प आ जायेंगे, नए आविष्कार आ जायेंगे। कोई भी प्रक्रिया या व्यवस्था या तकनीक कभी भी अंतिम और एकमात्र बिंदु पर जाकर कभी स्थिर नहीं होती।

 

6.  कोरोना संकट के कारण पढ़ाई के लिए ऑनलाइन कक्षाओं को विवशता में चलाया गया है और अब इसके विरोधी भी प्रकट हो गए हैं जबकि एक तथ्य ये है कि छोटे स्कूली बच्चों को छोड़ दें तो बड़े बच्चों के लिए सामान्य या सजीव कक्षाओं के इतर ऑनलाइन कक्षाओं की तरह अन्य रूप वाले ज्ञान प्राप्ति के केंद्र वर्षों से चल रहें हैं। यूट्यूब जैसे ऑनलाइन माध्यमों पर कई वर्षों से कई अध्यापक कक्षाएं ले रहे हैं, कोचिंग क्लास चल रही हैं, प्रतियोगी परीक्षा की कक्षाएं संचालित हो रहीं है और देखने वाले, सुनने वाले लाखों की सँख्या में स्टूडेंट्स होते हैं। कई छात्र स्वयंपाठी रूप में परीक्षा देते हैं, ओपन स्कूल व्यवस्था है, पत्राचार अध्ययन व्यवस्था भी कायम है, ये सब उदाहरण सबूत हैं कि ऑनलाइन कक्षा की तरह कई गैर परंपरागत माध्यम वर्षों से कायम हैं और कक्षाकक्ष वाली पढ़ाई एक मात्र जारी व्यवस्था नहीं है।

 

7.  ऑनलाइन कक्षा के विरोध में एक तर्क मोबाइल प्रयोग से होने वाली हानियों का है। जैसे आंखें कमजोर होना या बच्चों द्वारा गलत चीजें देखना आदि। आज मोबाइल घर घर में है। ऑनलाइन कक्षा से ज्यादा समय बच्चे वीडियो गेम खेलकर गुजारते हैं या अपने फोटो या वीडियो अपलोड करने में व्यस्त रहते हैं। ये जिम्मेदारी अभिभावकों की है कि बच्चों द्वारा मोबाइल का सीमित और सार्थक प्रयोग हो। 

 

8 .  स्क्रीन के एक तरफ शिक्षक है और दूसरी तरफ शिक्षार्थी। ये स्क्रीन रूपी पुल इसलिए है क्योंकि कोरोना वायरस स्क्रीन पार नहीं कर सकता। संचार माध्यम से सिर्फ सिग्नल आ जा सकते हैं, कोरोना वायरस ताबें की तार में बैठकर मॉडम से गुजरते हुए एक जगह से दूसरी जगह आ जा नहीं सकता। संकट खत्म होने तक लागू एक अस्थाई व्यवस्था के प्रति रोष निरर्थक है। समय बदलने और स्थिति सामान्य होने तक इंतजार करना ही पड़ेगा। यदि शिक्षक की चेतना सृजनात्मक हो तो वो अपनी सह्रदयता, अपनी कल्पनाशीलता से ऑनलाइन कक्षा को भी इतना असरदार, जानदार कर सकता है कि विषय बिंदु भी स्पष्ट हो जाये साथ ही शिक्षण का उद्देश्य भी पूरा हो जाये। शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा के लक्ष्य दोनों में कितना अंतर है, ये बताने या समझाने की आवश्यकता नहीं है।

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अवतार सिंह, जयपुर