मैं बदल रही हूँ

हाँ मैं बदल रही हूँ

देख देख औरों को 

उनके अनुरूप ढल रही हूँ

हाँ, मैं बदल रही हूँ...

प्रतिक्रिया की आदतों को छोड़

मौन में सिमट रही हूँ

हाँ,मैं बदल रही हूँ...

मौसम जैसे लोग यहाँ 

मौसमी मैं भी बन रही हूँ

हाँ, मैं बदल रही हूँ...

पहचान का हुनर आ गया

दुश्मनों से भी हँसकर मिल रही हूँ

हाँ, मैं बदल रही हूँ...

तटिनी मीठी खारी ही बन जाती है

सिंधु क्षार लिए सरिता सी बढ़ रही हूँ

हाँ, मैं बदल रही हूँ...

नहीं पड़ता फ़र्क अब हृदय के शूल का

स्पंदन उच्छवास ,विहँस चल रही हूँ

हाँ मैं बदल रही हूँ...

डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)