बिखरे सपनें

बिखरते आये हैं सपनें सदा से,

दुश्मन मोहते आये हैं

अपनी अलग अलग अदा से,

एक बार फिर बिखर गया

तो कोई बात नहीं,

फिर से मिला सौगात नहीं,

लेकिन हम आंसू बहाने वालों में से नहीं,

हौसले की महल खड़ी करेंगे यहीं,

संघर्ष करेंगे फिर से,

हर बार उठेंगे गिर गिर के,

शत्रु का काम ही है तोड़ना,

अपनी सहूलियत अनुसार

हमारी दिशाएं मोड़ना,

मगर हमने कभी

हार मानी न मानेंगे,

लक्ष्य भेदने सारा संसार छानेंगे,

तब होंगे हमारे पास अत्यधिक अनुभव,

जो तय करेंगे दिशा और दशा

करने को करलव,

देखते आये हैं और देखते रहेंगे

सपनें बार बार,

कर कर खुद में सुधार,

हम थे ही नहीं कभी तंगदिल,

एक दिन मिल ही जायेगी मंजिल।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग