अब दर्श तुम्हारा हो

करो कृपा तुम दशरथ नंदन,अब तुम्हीं सहारा हो |

ये  मन  ऑंखें  राह  निहारे, अब  दर्श तुम्हारा हो ||

इक मुझे वरदान दो  ऐसा,कि राम मय  हो जाऊँ |

हो सतकर्म मेरे  ऐसे  कि,भरत  लखन बन पाऊँ ||

करो अंधा यदि मुझे दो प्रभु ,श्रवण पुत्र प्यारा हो |

ये  मन  आँखे  राह  निहारे, अब  दर्श तुम्हारा हो ||

बना दो मुझे बाँस तुम प्रभू, मुरली कटि कृष्णा के |

सजूँ  मैं  रात |दिन  होठों  पर, रहूँ  दूर  तृष्णा  से ||

तुम त्यागी निज मन अनुरागी, तुम पालन हारा हो |

ये  मन  ऑंखें  राह  निहारे, अब  दर्श  तुम्हारा  हो ||

बनूँ सुदामा  रहोगे  मित्र, सदा  कृष्ण  को  भजती |

खाओगे प्रीति के  बेर तुम,शिबरी पथ कब तजती ||

दो  वर तन तजूँ  जटायूँ  सम, अवलम्ब हमारा हो ||

ये मन  ऑंखें  राह  निहारे, अब  दर्श  तुम्हारा  हो ||

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कवयित्री

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश