अभिशप्त योद्धा

हो गरीब किसान

जो जूझता है

गरीबी, मुफलिसी,

लाचारी, मजबूरी

कर्ज़, मौसम की मार

लड़ता है बन 

अभिशप्त योद्धा

न सिर्फ हालात से

अपनी ज़िन्दगी से भी

टूटी फूटी झोपड़ी

फटे हाल हालात

कभी खाने का खाना नहीं

कभी पहनने को कपड़े

कभी दवा के लिए पैसे नहीं

तो कभी इलाज के लिये

कभी बच्चों की पढ़ाई के लिये

तो कभी उनके शादी ब्याह के लिये

बस अभिशप्त योद्धा बन

जंग लड़ता रहता है जीवन की दुश्वारियों से

उसी तरह मजदूर भी

खेतों में 

खदानों में

बहुमंजिला इमारत

फैक्टरी

किसी भी जगह हो

पहाड़ों में

पहाड़ियों के नीचे

समुद्र में

समुद्र के नीचे

रेगिस्तानों में

ज़मीन की सतह पर

ज़मीन के नीचे

एक अभिशप्त योद्धा

की तरह लड़ता है जंग

पल पल बदलते हालातों से

मुश्किलों से, बाधाओं से

मौसम की प्रताड़ना से,

दुर्गम बाधित रस्तों से,

क्योंकि पालना है उसे

अपना परिवार

माता, पिता, भाई, बहन

बीवी, बच्चे

ज़िम्मेदारी को कांधे पर रख

बस बन अभिशप्त योद्धा

डटा रहता है हर चुनौती के

आगे बिना हार माने 

बिना थके जीतने को 

जीवन की हर बाज़ी मज़बूती से।।

....मीनाक्षी सुकुमारन

       नोएडा