अजीब दास्तां छटपटाहट की

     मेरी तो मान्‍यता यह है कि‍ चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो, व्‍यक्‍ति‍ में नि‍हि‍त रचनात्‍मकता छटपटाहट संग मि‍लकर सृजन करती है। चाहे वह चि‍त्रकला हो, साहि‍त्‍य हो अथवा राजनीति‍ यही छटपटाहट कारण है कि‍ मनुष्‍य आजकल हर क्षेत्र में हाथ पैर मार रहा है। यह अलग बात है कि‍ मुंह की खा रहा है।

     छटपटाहट जि‍से साहि‍त्‍यि‍क भाषा में अंतस से उठती संवेदनशीलता युक्‍त अनुभूति‍क सुगबुगाहट कहते हैं बड़े ही अजीबोगरीब कि‍स्‍म की स्‍थि‍ति‍ का नि‍र्माण करती है। यह छटपटाहट तीन तरह की होती है – बड़ी छटपटाहटें, छोटी छटपटाहटें और मीडि‍यम छटपटाहटें।

     छोटी छटपटाहटें हैं – कि‍सी कोमलांगी से उनके जनक जननी की अनुपस्‍थि‍ति‍ में प्रेममयी वातावरण बनाकर मि‍लना या बीवी की अनुपस्‍थि‍ति‍ में पड़ोसि‍न के संग फि‍ल्‍म देखना आदि‍। बड़ी छटपटाहटें हैं रातोंरात प्रसि‍द्ध हो जाने की चाह, नाम अति‍लोकप्रि‍य कराने की अदम्‍य छटपटाहट, कि‍सी राजनीति‍ज्ञ को ससुर के रूप में पाने की लालसा, लोगों के मध्‍य अपना नाम पोपुलर  करने की चाह अथवा शादीशुदा होते हुए भी कि‍सी कुवांरी से प्रेमास आदि‍। तो इस तरह हम छटपटाहट को साहि‍त्‍य की अनेक वि‍धाओं एवं नेताओं की अनेक अदाओं की तरह तरह के रूपों में पाते है।

     सारी मानवीय क्रि‍याओं का मूल केंद्र है यह छटपटाहट। कुछ कर जाऊं---कुछ हो जाए---कुछ लगे कि हो रहा है आदि‍। सारी बातों की ज्‍वालामुखि‍यां व्‍यक्‍ति‍ को जीवि‍त रखती है वरना अच्‍छे खासे एंग्री यंग मेन अभि‍नेता राजनीति‍ में आकर रातों रात सुर्खि‍यों और वि‍वादों में क्‍यों छा जाते और फि‍र दुम दबाकर क्‍यों भागते राजनीति‍ के सुनहरे अवसरों से? यह छटपटाहट ही कारण है कि दल बदलना, सरकार गिराना, नई सरकार बनाना आदि धड़ल्ले से भारत वर्ष में हो रहे हैं, भले ही इसमें जनता के खून पसीने की कमाई काफ़ूर हो जाए।

     हमारे शहर में एक है श्री अध्‍यक्ष महोदय जि‍नका नाम वि‍स्‍मृत हो चुका उन्‍हें अध्‍यक्ष की कुर्सी की लालच या उस पद की गरि‍मा। वे ढ़ेर सारी संस्‍थाओं में बाकायदा अध्‍यक्ष के रूप में शोभा बढ़ा रहे हैं।  बच्‍चों की क्रि‍केट टीम से लेकर बड़ों की ब्रि‍ज टीम तक उनका अध्‍यक्षीय प्रभामंडल शोभि‍त है। जहां तक मेरे अल्‍पज्ञान का हवाला है----शायद ही हमारे शहर में कोई ऐसा संघ या समि‍ति‍ बची हो जि‍सके वे अध्‍यक्ष न हो---

     इनके अध्‍यक्षीय प्रभामंडल से अति‍ प्रभावि‍त होकर एक रात जब अध्‍यक्ष सेकेंड शो फि‍ल्‍म देख कर घर लौट रहे थे----लुटेरों का एक गि‍रोह इनकी स्‍कूटर को रोका और वि‍नम्र प्रस्‍ताव रखा कि उनके धड़ाधड़ लुटेरा समिति के अध्यक्ष बन जाएँ।  प्रस्‍ताव ठुकराने के फलस्‍वरूप इन्‍हें अपनी स्कूटर, भारी भरकम जेब, गले की चेन, हाथ घड़ी, अंगुठी गवांनी पड़ी यह अलग बात है।

     साहि‍त्‍य से, राजनीति‍ से, चि‍त्रकला से, खेल से, सौन्‍दर्य से इन्‍हें कुछ लेना नहीं है। ओनामासी धम बाप पढ़े न हम की तर्ज पर हर क्षेत्र में ये शून्‍य हैं, फि‍र भी साहि‍त्‍यि‍क समि‍ति‍यां, क्रीड़ा समूहों, कला संस्‍थाओं, ब्‍यूटी पार्लरों की अध्‍यक्षता सम्‍हालने में एक अजीब से खुशी महसूसते हैं। यही छटापटाहट रहती तो बात थी – स्‍वयं को एक अच्‍छा वक्‍ता साबि‍त करने की गलत इच्‍छा भी इन्‍हें तड़पाती है, जब भी अध्‍यक्षीय भाषण देने मंच पर आते हैं- संदर्भों, वि‍षयों, प्रसंगों से कटकर उनका अवि‍रल धारा सा वक्‍तव्‍य जारी रहता है।

     उनको अध्‍यक्ष बनाने में कि‍सी भी समि‍ति‍ का फायदा यह है कि‍ वे बहुत ही जुगाडू कि‍स्‍म के प्राणी हैं- दूसरे--- अच्‍छे पद पर रहने के कारण चंदा उगाही भी अच्‍छा कर लेते है।

     जहां तक छटपटाहट का प्रश्‍न है, यह आज के युग में एड्स से भी भयंकर और कोरोना  से भी क्‍लि‍ष्‍ट रोग होता जा रहा है। जि‍से भी देखि‍ये एक न एक छटपटाहट दि‍लो दि‍माग के पि‍न्‍जरे में कैद कि‍ये हुए है आजकल हर क्षेत्र में जो उठापटक हो रही है, वह सब इस एकमात्र छटपटाहट का परि‍णाम है। 

कैशोर्य से कौमार्य में प्रवेश कर चुकी सद्य: नि‍र्मि‍त युवती का सबकी नि‍गाहों का – खासकर जवां मर्दों की आंखों में चढ़ जाने की ति‍लमि‍लाहट एक अजीब तरह की छटपटाहट है। इसी तरह पड़ोसि‍न से सुंदर दि‍खने की हौड, अल्‍पज्ञानी होकर पूर्ण ज्ञान बघारने की प्रति‍योगि‍ता उदाहरण के अंतर्गत  आते है।

     मेरे एक परि‍चि‍त हैं श्रीमान आयोजक। पहले बेचारे अच्‍छा-खासा तबला बजा रहे थे कोई नोटि‍स नहीं लि‍या तो आक्रोशि‍त हो, आवेशि‍त एंग्री होकर कवि‍ता लि‍खने लगे। दि‍ग्‍वि‍जय उपनाम के ये कवि केवल गोष्‍ठि‍यों तक सीमि‍त रह गये वार्ड मेंबरों की तरह। नाम की छटापटाहट उन्‍हें और अधि‍क आक्रोशि‍त कर आवेशि‍त कर दि‍या, अब आयोजक के नाम से जाने, पहचाने बुलाये जाने लगे हैं।

     नाटकों, रंगारंग कार्यक्रमों, कवि‍ गोष्‍ठि‍यों से सम्‍मेलनों तक आयोजि‍त कर स्‍वयं ही उदघोषणा करते हैं यह अलग बात है कि‍ वे शमा को समां कहते है। आयोजन के नाम से चंदा उगाही कर स्‍वयं के लि‍ये मोटर साईकि‍ल का इंतजाम अवश्‍य कर गये कि‍न्‍तु एक अदद सफल कार्यक्रम के लि‍ये छटपटाकर रह गये। अभि‍नंदन समारोहों का दौर चला तो एक वयोवृद्ध कवि‍ (यह तो अभि‍नंदन के समय पता चला कि‍ वह वयोवृद्ध कवि‍ भी है शायद) अच्‍छी खासी रकम ऐंठकर उनका अभि‍नंदन समारोह आयोजि‍त कि‍या।

     पत्रकारों ने आयोजक को इस नीरस व ऊबाऊ आयोजन के लि‍ये झाड़ा लताड़ा। फि‍र भी वे नहीं चेते – आजकल अखंड कवि‍ता पाठ आयोजन के लि‍ए गंभीरता से जुटे हुए हैं। अखंड रामचरि‍त मानस की तरह प्रांतीय, स्‍थानीय कवि‍यों को एक मंच पर लगातार चौबीस घंटों तक बारी-बारी से कवि‍ता सुनायी होगी। पता नहीं इस आयोजन से मेरे शहर पर क्‍या असर होगा, पर मेरे शहर पर क्‍या असर होगा, पर मेरी सेहत अभी से जवाब दि‍ये जा रही है।

डॉ0 टी महादेव राव 

45-50-13/3 फ्लैट नं 202 आकांक्षा होम्स - 2

आबिदनगर पार्क के पास , अक्कय्यपालम

वि‍शाखपटनम - 530 016 (आंध्र प्रदेश)

9394290204