तुम्हे बताने आया हूं मैं विद्वानों की परिभाषा
पाल रखी अपने मनमें खुद बनने की अभिलाषा
संस्कार निर्मित जब होंगे तब जागृत होगी आशा
पोथी पढ़ विद्वान बने जो सुनलो उनकी जिज्ञासा
गा गा कर जो गाल बजाए आडंबर कर हमें डराए
व्यर्थ अनर्गल भाषा से जो अपनी बातों को मनवाए
ऐसे ढोंगी ज्ञानवान बन स्वयंभू विद्वान् कहाए
लानत पाखंडी ज्ञानी को जो जग को भरमाए
ज्ञानी की कविता रट रट कर बन गए विद्वान जो
तोता रटंत श्लोक गाकर , कर रहे व्याख्यान जो
चुटकुलों की धार पर जनमानस मोहित करें जो
एसे अभिमानी पंडितोंको शास्त्री पदका भान जो
ज्ञानवान और गुण निधान अनुभव की जो खान है
एसे तपी शील परमार्थी को शास्त्र विधि का ज्ञान है
अंतर्मन की गहराई में परम तत्व का समाधान है
शास्त्रोक्त विधि का पालनकर्ता कहलाता विद्वान है
चिंतन मनन ईश आराधन परहित जिनका धर्म
राग द्वेष में भेद न माने जो करे सदा सत्कर्म
रहे सदा संतन हितकारी ना मन में रहे विकर्म
ऐसे जन विद्वान कहाएं जाने परमतत्व का मर्म
विद्वानों से भी बृहद कहाए वो पदवी विद्यावान
परमशक्ति की परम कृपा से जिसे मिला है ज्ञान
सागर सी गहराई जिसकी खुद का उसको भान
इनके सानिध्य सीख कर गीता बन जाते विद्वान
पालनकर्ता यम नियमों के,सीख हमें उनसे लेना है
प्रकृति पुरुष के तत्वज्ञान का उनसे सार हमें पाना है
कविता व्यंग कथाएं लिखना विद्वता का अंश शेष है
विद्वानों की रज मिल जाए यदि, शीश धरण करना है
बच्चू लाल परमानंद दीक्षित
दबोहा भिण्ड/ग्वालियर