बकासुर नहीं ज़मीनासुर

बिन नाथ का पगहा और सरकारी जमीन दोनों की किस्मत एक जैसी होती है। कभी भी कोई भी कहीं भी मुँह मार सकता है। मेरे घर के पास एक जैसी जमीन पड़ी थी जो आए दिन हमें ललचा रही थी।

कॉलोनी के हम तीन-चार मित्रों ने एक जबरदस्त योजना बनाई। भगवान के नाम पर भंडारा करने के नाम पर उस जमीन पर पहले अंगुली रखी, फिर हथेली और आगे चलकर साष्टांग उस पर अपना कब्जा जमा लिया। लोगों को लगा कि हम अपना बेशकीमती समय भगवान के लिए समर्पित कर अनंत कोटी लाभ कमा रहे हैं। 

कुछ लोग हमारा काम आसान करने के लिए हाथ बटाने आगे आए। अब उन बेवकूफों को कौन बताए कि हम किस मंशा से यह काम कर रहे हैं। अब भगवान भी सोचते होंगे कि वे एक बार क्या कई बार बकासुरों का वध तो कर सकते हैं, किंतु हम जैसे ज़मीनासुरों को कतई नहीं।  

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध युवा व्यंग्यकार